Comments (10)
31 Jul 2020 08:14 PM
सुंदर व्यंगपूर्ण प्रस्तुति।
धन्यवाद !
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Author
31 Jul 2020 11:00 PM
आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर
31 Jul 2020 07:23 PM
जय श्री राधे कृष्ण!
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Author
31 Jul 2020 07:30 PM
जयश्री राधेश्याम
31 Jul 2020 05:42 PM
चंचल मन, भांति-भांति के सपनों में खोया रहता
वो भी क्या दिन थे,जब मनचाहा घुमा-खाया,
इस कोरोना ने इन सब पर प्रतिबंध लगवाया,
दूर इसके होते-होते, मैं भजन करता कन्नैया,
बिना भोग लगाएं खुद न चखुंगा,हे नटवर नागर नाग नच्चया।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Author
31 Jul 2020 07:04 PM
जयश्री कृष्ण
31 Jul 2020 04:06 PM
अति सुन्दर रचना।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
Author
31 Jul 2020 07:05 PM
आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर
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आपको सादर अभिवादन धन्यवाद