आपके लेख से यह प्रतीत होता है कि आप अंग्रेजी विरोध पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। हिंदी का स्वयं का एक उच्च स्थान है उसके विकास के लिए किसी अन्य भाषा की आलोचना करने से हिंदी का विकास नहीं हो सकता है। हिंदी विकास के लिए हमें उचित प्रयास करने होंगे जिसके लिए विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी की उपयोगिता एवं महत्व को समझने एवं समझाने की आवश्यकता है। जिसके लिए है पाठ्यक्रम में विभिन्न स्तरों में हिंदी का समावेश कर हिंदी के प्रति जागरूकता एवं रुचि जनसाधारण में पैदा करनी होगी। विज्ञान ,प्रौद्योगिकी एवं अनुसंधान आदि में हिंदी भाषा के प्रयोग हेतु हमें एक बड़े स्तर पर उपलब्ध अंग्रेजी साहित्य के अनुवाद की व्यवस्था करनी होगी। तभी हमारा हिंदी प्रयोग का अभियान सफल हो सकता है। यह तभी संभव है जब प्रशासनिक एवं राजनीतिक स्तर पर इस हेतु सहमति एवं प्रयास किए जाएं। हमारे देश में भाषाई क्षेत्रीयता जो राजनीति से प्रेरित है हिंदी विकास के प्रयत्न में बाधक है। सर्वप्रथम हमें इस समस्या को दूर कर हिंदी विकास हेतु प्रयास करने होंगे। अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी के प्रचार एवं प्रसार की व्यवस्था एवं जनसाधारण में हिंदी भाषा सीखने के लिए रुचि एवं अवसर प्रदान करने होंगे। विभिन्न मंचों के माध्यम से इस हेतु जनसाधारण में जागरूकता पैदा करनी होगी।
हमें हमारे हिंदी विकास के प्रयत्न में व्यवहारिकता एवं संकल्प की आवश्यकता है। कोरी नारेबाजी एवं राजनीतिक स्वार्थ के लिए हिंदी विकास का मुद्दा उठाना तर्कसंगत नहीं है।
धन्यवाद !
कृपया स्पष्ट करें कि आपको महाकवि की उपाधि कब और किस विषय में प्रदान की गई है।
आपकी बातें सर्वथा सत्य है । किंतु मैंने जो इस छोटे उम्र में जो धरातल पर जिया मेरे आस पास सारी विषमताओं का कारण अंग्रेजियत मानशिकता है।मैं अच्छा कक्षा 10 से स्वयं भुक्तभोगी हूं । मानता हूं मेरे पास अनुभव की कमी है पर मैं हिंदी का प्रचार प्रसार सिर्फ अपने काव्य तक सीमित नहीं किया है ।मैंने गांव-गांव जाकर हर कॉलेज महाविद्यालय के छात्रों से मिलकर हिंदी का प्रचार प्रसार किया है आपको बहुत जल्द राम मनोहर लोहिया जी के बाद हमारा आंदोलन का विकराल रूप देखने को मिलेगा । सर और हम कवि या महाकाव्य नहीं है हम एक साहित्य प्रेमी और मैंने जो आकलन किया है मेरे समाज में तमाम बुराइयां का कारण अंग्रेजी का प्रभाव है। हमारा हिंदी सर्वश्रेष्ठ है था और रहेगा। लेकिन बहुत सारी बातें जो धरातल पर लागू नहीं है । मैं वही करने कोशिश कर रहा हूं। मैं प्रगतिवाद के लेखकों का अनुयाई हूं ।इसलिए ना मैं झुक सकता हूं ना मैं रुक सकता हूं। हाल ही में मैंने युग प्रवर्तक नामक पत्रिका का विमोचन एवं संपादन किया और यह काम हमने लॉकडाउन में किया अपने छात्रों मित्रों एवं शिक्षकों की उपस्थिति में ।धन्यवाद आपने काफी सारी जानकारियां दी आगे ऐसे ही मुझे सही करते रहें।
।। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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भाई राजवीर आप हम सब भारत में आर्य संतान हैं, संस्कृत हमारे ही ऋषियों पूर्बजों की समृध्द भाषा है जिसमें ज्ञान विज्ञान वेद शास्त्र रचित है । संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। संस्कृत और आर्य ने किसी को गुलाम नहीं बनाया।आप अच्छा लिखते हैं और प्रयास करें।