हां यदि अब भी पड़ोसी देश अपनी हिमाकत से बाज नहीं आते हैं तो फिर कठोर निर्णय लेने की आवश्यकता तो पड़ेगी, किन्तु एक साथ तीन फ्रंन्टो पर एक साथ निपटने में समस्या तो आनी है,देश के नागरिकों को त्याग और कठिनाई दोनों ही रुप में तैयार रहना चाहिए,हम सीमाओं पर लड़ नहीं सकते परन्तु देश की सेवा में अपने सुख-दुख को कुछ समय के लिए लंबित तो रख सकते हैं, सरकार को आर्थिक रूप से मदद करने को भी तैयार रहना होगा। सैनिकों को हम अकेले नहीं छोड़ सकते, और सरकार को सहारा देने को भी तत्पर रहना होगा। जयहिंद
निःसंदेह,चीन हमें घेरने के लिए नेपाल और पाकिस्तान को मोहरा बना है, लेकिन इतने वर्षों में हमने कोई ऐसा मित्र नहीं बनाया जो सीधा तान के कह सके, भारत की घेराबंदी का वह विरोध करता है, एक जमाना वह भी था,जब रुस ने अमेरिका तक को पाकिस्तान के पक्षक् में खड़े होने से रोक दिया था,आज वही रुस मूकदर्शक बना हुआ है, तो साफ है कि कहीं हम मित्र की पहचान करने में चूक गए हैं। आपकी टिप्पणी यथार्थ परक है, धन्यवाद जी।
सच है अब कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है क्योंकि ये हमें कमजोर समझ रहे हैं। जैसे को तैसा। आपको सादर अभिवादन धन्यवाद
यह सब प्रपंच चीन द्वारा रचा गया है। दरअसल चीन अपना आधिपत्य एवं प्रभाव एशिया क्षेत्र में बढ़ाने के लिए पाकिस्तान और नेपाल की मदद से भारत पर दबाव कायम करना चाहता है। जिसके लिए वह आर्थिक रूप से गरीब देश पाकिस्तान और नेपाल को अपना आर्थिक गुलाम बनाकर उन्हें भारत के विरुद्ध मोहरा बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है।
भारत को आवश्यक है कि वह चीन के किसी भी झांसे में ना आए और उस पर विश्वास करना बहुत बड़ी भूल होगी। अन्यथा जिसके दीर्घगामी परिणाम भारत को भोगने होंगे।
धन्यवाद !
निश्चित ही भारत कमजोर नहीं है, किन्तु इस वक्त ये जो हो रहा है वह एक सुनियोजित ढंग से षड्यंत्र है, तीन तरफ से घेरने के साथ ही बंगला देश, श्रीलंका आदि अन्य पड़ोसी भी इस समय नजाकत को समझते हुए चीन से रियायत की चाह में उस ओर झुकते दिखाई दे रहे हैं,तब हालात सामान्य नहीं रह पाएंगे,इनका उपचार अलग-अलग करके ही किया जा सकता है,कूट नीति की आवश्यकता है, ताकत फिर कभी?