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दर्दे दिल को तुम क्या जानो। आंखों के इज़हार को तुम क्या पहचानो। सुलगते ख्वाबों को तुम महकता गुलाब समझते हो। गम में डूबे रातों के अंधेरों को तुम तो सुबह का आफ़ताब कहते हो।
श़ुक्रिया !
दर्दे दिल को तुम क्या जानो।
आंखों के इज़हार को तुम क्या पहचानो।
सुलगते ख्वाबों को तुम महकता गुलाब समझते हो।
गम में डूबे रातों के अंधेरों को तुम तो सुबह का आफ़ताब कहते हो।
श़ुक्रिया !