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उन मज़लूमों का दर्द समझते नहीं ये ,
जिनके आंसू पौछने पहुंच जाते हैं ये , अपने घड़ियाली आंसुओं की कीमत वसूलते हैं ये ,
फ़र्ज़ और ज़र्फ़ में फ़र्क करते खुदगर्ज़ हैं ये ,
एक चेहरे के पीछे कई चेहरे लगा लेते हैं ये ,
फरिश्तों के भेष में छुपे हुए शैतान हैं ये ।

श़ुक्रिया !

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सत्य वचन

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