Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings

मरीज़े मोहब्ब़त उन्ही का फ़साना सुनाता रहा दम़ निकलते निकलते,
तभी ज़िक्रे शाम़े अलम़ जब के आया च़रागे स़हर बुझ गया जलते जलते,
इरादा था करके मोहब्बत का लेकिन फ़रेबे तब़स्सुम़ में फिर आ गए हम ,
अभी खाके ठोकर संभलने ना पाए ,
तो फिर खाई ठोकर संभलते संभलते ,
उन्हें खत में लिखा था दिल मुज़्तरिब है,
जवाब उनका आया मोहब्ब़त ना करते ,
तुम्हें दिल लगाने को किसने कहा था,
संभल जाएगा दिल बहलते बहलते ,

श़ुक्रिया !

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
Loading...