(१)
!! मैं हूं प्रेम दीवाना !!
हूं प्रेम दीवाना राधे तू वृषभानु दुलारी ।
तेरी चितवन मनमोहे, छवि लागे अति न्यारी।।
जब से तुझ से प्रीत हुई तू मेरे हृदय समाई ।
पल छिन तेरे दरश न होते, प्रीति की बंसी बजाई ।
देख तुझे यह व्याकुल नैना, हो जाते बलिहारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
प्रेम का पाठ पढ़ाने को मैं इस जग में हूं आया।
धर्म अधर्म का सबक सिखा ,गीता का ज्ञान कराया।
मैं ठहरा निर्मोही, कृपालु , भव बंधन त्रिपुरारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
मैं ही जगत का पालनहार तू वैभव कल्याणी है ।
आस्था और विश्वास का संगम, प्राप्त करें वो ज्ञानी है ।।
तुझ बिन कोई मोल न मेरा,तू राधे कृष्णा प्यारी ।–
मैं हूं तेरा प्रेम दीवाना राधे, तू वृषभानु दुलारी।।
रोम रोम में बसे हो ,कान्हा फिर क्यों हाथ छुड़ाया।
बस गए मथुरा में जाकर, कितना ही मुझे रुलाया ।
तुझे ढूंढती रही मैं गोकुल, यमुना,कदम्ब की डारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे तू बृजभान दुलारी ।।
धरा गगन से भी है ऊंचा,अमर प्रेम यह सच्चा।
प्रीति लगाई जिसने मुझसे,वह नायाब है अच्छा।।
मोह माया का विषम जाल है, छू न सके संसारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे , तू वृषभानु दुलारी।।
( स्वरचित मौलिक)
नमिता गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
(१)
!! मैं हूं प्रेम दीवाना !!
हूं प्रेम दीवाना राधे तू वृषभानु दुलारी ।
तेरी चितवन मनमोहे, छवि लागे अति न्यारी।।
जब से तुझ से प्रीत हुई तू मेरे हृदय समाई ।
पल छिन तेरे दरश न होते, प्रीति की बंसी बजाई ।
देख तुझे यह व्याकुल नैना, हो जाते बलिहारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
प्रेम का पाठ पढ़ाने को मैं इस जग में हूं आया।
धर्म अधर्म का सबक सिखा ,गीता का ज्ञान कराया।
मैं ठहरा निर्मोही, कृपालु , भव बंधन त्रिपुरारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
मैं ही जगत का पालनहार तू वैभव कल्याणी है ।
आस्था और विश्वास का संगम, प्राप्त करें वो ज्ञानी है ।।
तुझ बिन कोई मोल न मेरा,तू राधे कृष्णा प्यारी ।–
मैं हूं तेरा प्रेम दीवाना राधे, तू वृषभानु दुलारी।।
रोम रोम में बसे हो ,कान्हा फिर क्यों हाथ छुड़ाया।
बस गए मथुरा में जाकर, कितना ही मुझे रुलाया ।
तुझे ढूंढती रही मैं गोकुल, यमुना,कदम्ब की डारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे तू बृजभान दुलारी ।।
धरा गगन से भी है ऊंचा,अमर प्रेम यह सच्चा।
प्रीति लगाई जिसने मुझसे,वह नायाब है अच्छा।।
मोह माया का विषम जाल है, छू न सके संसारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे , तू वृषभानु दुलारी।।
( स्वरचित मौलिक)
नमिता गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)