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आधुनिक जगत में व्यक्तिगत सोच के स्थान पर समूह सोच का अधिक विकास हुआ है। संचार एवं संपर्क माध्यमों के द्वारा विभिन्न सामाजिक मंचो के विकास से समूह सोच का वर्चस्व अधिक है।
जिसके कारण आधुनिक अंधानुकरण को बढ़ावा मिला है, एवं व्यक्तिगत सोच का हनन हुआ है।
जहां तक आधुनिक समाज में नारी की भूमिका का प्रश्न है। यह एक अत्यंत जटिल प्रश्न है।
जहां तक समाज में नारी सशक्तिकरण एवं आत्मनिर्भरता का प्रश्न है यह केवल कुछ बड़े शहरों एवं कस्बों तक की सीमित होकर रह गया है।
ग्रामीण परिवेश में नारी की स्थिति में कोई विशेष सुधार ना आकर वह अभी भी पुरुषों के अधीन परंपराओं , संस्कार एवं सामाजिक मूल्यों की पृष्ठभूमि में शोषित स्त्री बनकर रह गई है।
यह एक कटु यथार्थ है।
अतः सार्थक आधुनिकता एक यक्ष प्रश्न बनकर रह गई है।

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