डी. के. निवातिया
Author
4 Sep 2021 01:36 PM
तहदिल शुक्रिया आपका आदरणीय, बड़ी अच्छी रचनात्मक प्रतिक्रिया दी आपने !!
4 Sep 2021 02:16 PM
धन्यवाद !
बरखा का मौसम जी को जला के चला जाए ,
हाय रे ये पानी अगन लगाए , अगन लगा के चला जाए ,
कभी-कभी खोया हुआ फिर मिल जाए ,
जाए जो समय फिर मुड़ के ना आए ,
धरती से नभ तक अंधेरा ही अंधेरा ,
जाने कब किस दिन आएगा सवेरा ,
पागल मन मोरा पिया पिया गाता चला जाए , जी को जला के चला जाए ,
धन्यवाद !