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बरखा का मौसम जी को जला के चला जाए ,
हाय रे ये पानी अगन लगाए , अगन लगा के चला जाए ,
कभी-कभी खोया हुआ फिर मिल जाए ,
जाए जो समय फिर मुड़ के ना आए ,
धरती से नभ तक अंधेरा ही अंधेरा ,
जाने कब किस दिन आएगा सवेरा ,
पागल मन मोरा पिया पिया गाता चला जाए , जी को जला के चला जाए ,
धन्यवाद !

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तहदिल शुक्रिया आपका आदरणीय, बड़ी अच्छी रचनात्मक प्रतिक्रिया दी आपने !!

धन्यवाद !

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