आलोचना नहीं है कहीं भी, सिर्फ विवेचना कर रहा था भक्तियोग और कर्मयोग में संबंध स्थापित करने का, सिर्फ समझ का फर्क़ है, जहाँ तक पाखंड का सवाल है तो यह तो सभी धर्मों में हो सकता है।
आलोचना नहीं है कहीं भी, सिर्फ विवेचना कर रहा था भक्तियोग और कर्मयोग में संबंध स्थापित करने का, सिर्फ समझ का फर्क़ है,
जहाँ तक पाखंड का सवाल है तो यह तो सभी धर्मों में हो सकता है।