श्याम सुंदर जी सादर नमस्कार, भौतिक विकास की दौड़ में हमने प्रकृति के साथ बहुत छेड़छाड़ कर ली है, अब प्रकृति सहन करने में असमर्थ महसूस करने लगी है! काश हमारे नीति नियंता इसका मुल्याकंन करते।
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श्याम सुंदर जी सादर नमस्कार, भौतिक विकास की दौड़ में हमने प्रकृति के साथ बहुत छेड़छाड़ कर ली है, अब प्रकृति सहन करने में असमर्थ महसूस करने लगी है! काश हमारे नीति नियंता इसका मुल्याकंन करते।