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सर क्या लिखा है आपने ,जबरदस्त , ।
लग ही नही रहा कि कोई साहित्यपेडिया का मेम्बर लिख रहा है ऐसे लग रहा है जैसे कोई राष्ट्रीय कवि लिख रहा है।
प्रसाद और गुप्त की शैली में जबरदस्त लिखा है।
विंब है ,अलंकार है, रस है सब कुछ है इसमें।
मेरा अनुमान यही कहता है कि ये पुरुष्कार आप ही जीतोगे।
बेहतरीन कविता , मंच की कविता लिखी है ।
पढ़कर मज़ा आ गया ।

सादर प्रणाम ।।

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2 Feb 2021 08:18 PM

मै तो वाणिज्य का विद्यार्थी हूं हिंदी व्याकरण की समझ बिल्कुल भी नहीं है। मन आता है तो प्रयास के लेता हूं। आपका बड़प्पन है ये सब। आपका प्रोत्साहन मेरे लिए कितना अधिक महत्वपूर्ण है, व्यक्त नहीं कर सकता। बहुत बहुत आभार और नमन।

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