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वोट माँगना और वोट के लिए धन्यवाद देना एक सामाजिक सदाचार हो सकता है किंतु योग्यता के लिए इनका कोई मतलब नही जैसे आप हीरे की आप सूरज की या आप किसी निकृष्ट विचार की तारिफ़ करे या ना करे उनपर कोई फर्क नही पड़ता । आपको उनसे ख़ुशी मिली इससे भी कोई फर्क नही आपको दुःख हुआ इस से भी कोई फर्क नही यही प्राकृतिक आजादी है ।
मैं इसी में विस्वास करता हूँ ,सब को अपने अनुसार सोचने का अधिकार उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करने का।
हमें नेता बनकर लोगों के द्वार द्वार जाकर वोट नही मांगना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति की स्वतंत्र बाधित होती है और प्रतियोगिता से पारदर्शिता समाप्त हो जाती है

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