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आपके सकारात्मक भावों का स्वागत है।
परंतु वास्तविक स्थिति में बहुत बदलाव आ चुका है।
पेड़ों के लगातार काटने से एवं अंधाधुंध भवन निर्माण की होड़ ने पर्यावरण को दूषित किया है। निरंतर प्रवासी जनसंख्या में बढ़ोत्तरी से संसाधनों की कमी महसूस की जा रही है। बिना किसी मानक के भूजल का दोहन जल आपूर्ति की समस्या का एक मुख्य कारण बन गया है। बढ़ती जनसंख्या के अनुसार यातायात सुविधाओं का अभाव एवं वाहनों की बढ़ती संख्या हर एक दिन यातायात अवरुद्ध होने का कारण बन रही है। प्रदेश शासन को अपनी कुर्सी बचाने की कवायद से फुर्सत नहीं है। राजनीतिक गलियारों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। शासकीय विभाग भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं है। दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई कमर तोड़ रही है। तथाकथित मेट्रो कल्चर एक विशेष वर्ग के दिमाग पर हावी है। जिसके फलस्वरूप आम आदमी की कोई सुनवाई नहीं है। क्षेत्रीयता की मानसिकता स्थानीय लोगों में पायी जाती है जो भेदभाव का कारण बनती है। समृद्ध वर्ग द्वारा जन कल्याण का दिखावा आए दिन किया जाता है । परंतु आम आदमी की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
यह मेरे बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वतंत्र विचार हैं जो मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। मेरा उद्देश्य वास्तविकता से आगाह करना मात्र है। किसी इतर भावना से किसी वर्ग विशेष को आहत करना या किसी राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति नहीं है।
फिर भी किसी को मेरे विचारों से ठेस पहुंचती है तो उसका मैं क्षमा प्रार्थी हूं।

धन्यवाद !

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लगभग २०बर्ष पहले , एक प्रशिक्षण के लिए बैंगलोर में रहा। रचना उसी समय लिखी थी। मैं आपसे पूर्ण रूप से सहमत हूं।

आपके कथन से मैं सहमत हूं कि 20 वर्ष पहले बेंगलुरु एक बहुत ही सुंदर उद्यानों के शहर के रूप में सुंदर पर्यावरण युक्त था। परंतु लगातार प्राकृतिक संपदाओं के दोहन से वर्तमान स्थिती निर्मित हुई है।

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