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तुम से उठती हूं, तुम में ही समा जाती हूं
छू कर तुम्हारे किनारे को, तुम्हारे आगोश में समा जाती हूं। तुम से मिलने को, वेताव चली आती हूं। मैं तुम्हारी ही तो लहर हूं, तुम्हारे विना कहां रह पाती हूं।।आपकी रचना बहुत सुंदर लगी।

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यह कविता आत्मा और परमात्मा के अलौकिक प्रेम संबंध पर आधारित है। आप जान गए होंगे ।

जी हां,हम सभी उस परमात्मा के ही प्रकाश हैं,उसी में समा जाते हैं। बहुत सुंदर, आपको सादर अभिवादन।

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