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भरी दुपहरी दूर है गाँव ,
सूनी डगर नहीं है छाँव ।
हमें लग रहा है कि आपको पैदल काफी दूर कहीं जाने पड़ गया है । जाड़े के मौसम के बाद अभी शुरूआती गर्मी में ही । काफी सुंदर चिंतन किया कविता है सर । लेकिन इसमें थोड़ी और पंक्तियाँ जोड़ दीजिये ताकि हमलोगों को पढ़ने और सीखने को मिले ।

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आपको सादर नमस्कार धन्यवाद ऊ

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