धन्यवाद श्रीमान चतुर्वेदी जी, मैंने तो अठत्तर की बाढ़ को स्वयं जिया है,तब मैं उत्तरकाशी में शिक्षा ग्रहण कर रहा था और बाढ़ आने से एक गांव में फंसे रहे, सड़कें टूट गई थी, लगभग पचपन किलोमीटर पैदल सफर किया, नाले-गधेरे पार करने पड़े पुल टूट गये थे, एक माह तक अस्थिरता बनी रही,खद्यान तक की समस्याओं से लोगों को जूझना पड़ा था। आज भी हम उनही परिस्थितियों में है।
धन्यवाद श्रीमान चतुर्वेदी जी, मैंने तो अठत्तर की बाढ़ को स्वयं जिया है,तब मैं उत्तरकाशी में शिक्षा ग्रहण कर रहा था और बाढ़ आने से एक गांव में फंसे रहे, सड़कें टूट गई थी, लगभग पचपन किलोमीटर पैदल सफर किया, नाले-गधेरे पार करने पड़े पुल टूट गये थे, एक माह तक अस्थिरता बनी रही,खद्यान तक की समस्याओं से लोगों को जूझना पड़ा था। आज भी हम उनही परिस्थितियों में है।