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अभिव्यक्ति की आजादी प्राकृतिक देन है किंतु समाज में इसके लिए युक्ति युक्त बन्धन भी है जो व्यक्ति और सत्ता दोनों के लिए समान रूप से जरूरी है क्योंकि व्यक्ति ही सत्ता है । अगर सत्ता क़ानूनी रूप ईमानदारी का व्यवहार करे तो तराजू के दोनों पलड़ों को संतुलित किया जा सकता है किंतु सत्ताधिकारी सस्ती लोकप्रियता और स्वार्थवश ऐसे प्रयोग करती है और ऐसे प्रयोगों को बढ़ाबा देती है जिनसे प्राकृतिक और सामाजिक आजादी और बन्धन का ताना बाना बिगड़ जाता है । सत्ता पूर्णरूप से सक्षम में प्रेम में भी और हथियार में भी किन्तु सत्ता इनका प्रयोग स्वार्थ सिद्धि में करती है जिसकी बजह से संतुलन बिगड़ता है और सत्ता और सत्ता के प्रचारक फिर घड़ियालु आँसूँ बहाकर कैद और प्रताड़ना को जरूरी बताते है क्योंकि उनको लगता है कि अभिव्यक्त का कारण अति लोकत्रंत्र है ना कि उनका व्यवहार ।

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सही बात है,पर आजकल देश दुनिया में अराजक तत्वों एवं राजनीतिक पार्टी इस का दुरपयोग करते हैं। आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर।

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