सुरेश कुमार चतुर्वेदी
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14 Sep 2020 12:04 PM
तीर्थ यात्रा पर , शासकीय कार्य से देश में हर तरफ गया,लगभग सभी राज्यों में , अब आपका काम चल जाता है। इसमें पर्यटन तीर्थ यात्राएं बहुत बहुत सहायक है। मुझे खुशी है धीरे-धीरे ही सही हिंदी का प्रयोग बड रहा है। आपको सादर प्रणाम धन्यवाद।
अपनी बोली-भाषा को जितना सहज होकर समझा जा सकता है, इसका मुल्याकंन मुझे तब हुआ जब मैं दक्षिण भारत में घुमाने के लिए गया, वहां पर अधिकांश लोग टूटी-फूटी हिंदी बोलने का प्रयास करते हैं, और तब उसे समझने में मुझे स्वंय समय लगा, क्योंकि वह ऐसा कहते हैं कि पता ही नहीं चलता ये क्या कह रहे हैं या बता रहे हैं, तब उनसे वार्ता लाप करने पर वह समझाने के लिए इसारा करते हैं,कि वह क्या चाहते हैं, ऐसे में यदि इस भाषा को व्यापक फलक में देखने का साहस किया जाता तो उसका लाभ हम सबको होता, लेकिन यह नहीं हो सका है, यही दुखद है, फिर भी आज जब हिन्दी भाषी लोग रोजगार के लिए या सैलानी लोग आने जाने लगे हैं तो वहां के लोग भी इसे सीखने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं, और शायद आने वाले समय में इसका महत्व बढ़ जाएगा ऐसी अपेक्षा है! सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।