अद़ना सा एक इंसान हूं कोई फरिश्त़ा नहीं। इस वतन की मिट्टी हूं कोई आसमाँ नहीं। आरजू बस यही है किसी के कुछ काम आऊं। फ़ना हो इंसानिय़त की ख़ातिर कुछ नाम कर जाऊं।
श़ूक्रिया !
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अद़ना सा एक इंसान हूं कोई फरिश्त़ा नहीं।
इस वतन की मिट्टी हूं कोई आसमाँ नहीं।
आरजू बस यही है किसी के कुछ काम आऊं।
फ़ना हो इंसानिय़त की ख़ातिर कुछ नाम कर जाऊं।
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