भरी दुपहरी दूर है गाँव ,
सूनी डगर नहीं है छाँव ।
हमें लग रहा है कि आपको पैदल काफी दूर कहीं जाने पड़ गया है । जाड़े के मौसम के बाद अभी शुरूआती गर्मी में ही । काफी सुंदर चिंतन किया कविता है सर । लेकिन इसमें थोड़ी और पंक्तियाँ जोड़ दीजिये ताकि हमलोगों को पढ़ने और सीखने को मिले ।
आपको सादर नमस्कार धन्यवाद ऊ
लाजवाब।
आपको सादर अभिवादन धन्यवाद सर
बहुत सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद आपका जी
आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर
बधाई चतुर्वेदी जी। आशा करते हैं संपर्क नंबर देंगे ताकि चर्चाएं प्रत्यक्ष कर सकें।
प्रणाम!
आपको सादर नमस्कार सर।९४२५६७३०२५