भरपाई
‘’ बस अब बहुत हो चूका,अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं होता तुम सबने मुझे समझ क्या रखा है ? हैं ! क्या मैं कामवाली बाई हूँ , सेविका हूं क्या तुम सब की ? क्या मैं तुम सब की आज्ञा पालन करने वाली तुम्हारी गुलाम हूँ. ? तुम सब ने मुझे
गूंगी गुडिया बना रखा अब तक . चाहे तुम सब जितना भी ज़हर उगलो, गालियाँ दो ,ताने मारो ,मुझे और मेरे मायके वालों को और उस पर मुझ पर पाबंदियां लगाओ ,तो और मैं सब बर्दाश्त करती रहूंगी, क्यों ? तो सुनो मिस्टर ! अब यह सब नहीं होगा।
निशा के गुस्से से तमतमाए चेहरे और तीखी व् बुलंद आवाज़ ने सब के होश उड़ा दिए ।धरती की तरह ससुराल वालो और कायर ,गैर जिम्मेदार पति के अत्याचार चुप चाप ,पक्षपात ,षड्यंत्र , और पाखंड सहने वाली नारी के भीतर से यह ज्वालामुखी एक दिन फटना ही था ,सो आज फट पड़ा ।
निशा आवेश मे अपने कमरे में गयी और अपने सूटकेस में अपने कपड़े ,गहने और कुछ ज़रूरी सामान पैक करके घर से बाहर निकल आई । उसका पति रमेश उसके पीछे जल्दी-जल्दी उसे रोकने को आगे बढ़ा तो उसने हाथ बढाकर इशारा किया ,’’ वही रुक जाओ रमेश ! अब तुम मुझे रोकने ,मनाने का हक खो चुके हो अब कोई फायदा नहीतीर कमान से छुट चुका है अब वापिस तो आने से रहा।अब मुलाक़ात अदालत में होगी.’’ ( गेट के पास पहुंचकर वापिस मुड़कर रमेश की ओर मुखातिब होते हुए ) ‘’ और हाँ मेरी भरपाई की रकम तैयार रखना , ५० लाख समझे ! ‘’
‘’५० लाख ! ‘’ रमेश के हाथों के तोते उड़ गए।
‘’ हाँजी ! और क्यों नहीं ! जो कुछ मैने इस घर में खोया है , वोह क्या वापिस नहीं लूगी सूद समेत ।”
इतनी आसानी से छोड़ दूंगी क्या ! मेरी उच्च शिक्षा क्या चूल्हे में झोकने के लिए थी दर्द, संताप, घुटन, अपमान और उपेक्षा ,जो मुझे तुमसे और तुम्हारे परिवार वालों से मिला ।यह सब की भरपाई तो लेना बनता है ना.!. जब से हमारी शादी हुई तुम मुझे बस मेरे फ़र्ज़ याद करवाते रहे , मेरे हकों की बात कभी की ही नहीं , मगर अब इस घर से अपना आखिरी हक तो लेकर ही रहूंगी समझे!
और निशा ने मेन रोड पर आकर टैक्सी रुकवाई ,समान रखा और एक पंछी की तरह
कैद खाने से हमेशा के लिए आजाद हो गई ।