LGBTQ पर आम चर्चा …
जब शादी इतना बुरा ही हैं तो लोग करते ही क्यो हैं ? मुंशी प्रेमचंद इसे थैलीनुमा साँप का दर्जा देते है जो स्वर्ग पाने की लालसा में किया गया कृत्य हैं ।
जी हाँ ,मैं आज सुप्रीम कोर्ट के समलैंगिकता (LGBTQ) के निर्णय पर लिख रहा हूँ , कितना दमनकारी और अन्याय पूर्ण रहन सहन है इस समाज का …. तनिक भी मानवता और दयालुता नजर नही आती …. स्वतंत्रता, समानता और स्वभिमान के लिए लड़ रही यह समुदाय वास्तव में न्याय के हकदार हैं किंतु न्याय की लालसा या झलक ने न्याय के अंधे होने का उत्तर प्रस्तुत किया है ….।
ना जाने शक्ति के पृथक्करण की क्या सीमायें हैं जो इस समुदाय को न्याय की आस्था में और प्रतीक्षा कराने पर तुली हुई हैं । थोड़ी सी सवेंदना इस लिए है कि प्राकृतिक न्याय एवं सामाजिक न्याय की जीत होनी चाहिए ।
लंबे अरसे से संघर्षरत यह समुदाय इस दमनकारी और पाखण्डी समाज मे एवं विवाह के ओछी नीतियां जो विषम लैंगिकता पर बल देता है जहां स्त्री और पुरुष के भावनाओ को तवज्जो नही दिया जाता है उनमें महज एक झूठी और दम्भनुमा सहमति जताई और भरी जाती हैं कि अब से यह स्त्री-पुरुष दांपत्य में बंध चुके है — पर ,जो समलैंगिक हैं उन पर कोई सुझाव नही देता …..।
कितनी अचरज की बात है ना , आस्था जगा कर मौत के घाट उतार देना …. ।
आधुनिकता के इस दौर में हम पांखडी और आर्थोडॉक्स होते जा रहे है यू कहे तो हम समझदार नही बल्कि आज्ञाकारी होते जा रहे है जो शायद कुछ पल खुशी दे सकता है पर यह विनाश का रास्ता है ।
मैं ,प्राकृतिक न्याय और समाजिक न्याय एवं सविधान के स्वतंत्रता ,समानता को जीतते हुए देखना चाहता हूँ ।
इसलिए भी ,क्योंकि लिखना आसान है इन समुदाय लोगो के प्रति सवेंदना और समानुभूति रखना शायद जटिल है ।
–rohit ❤️