Kashvi
तुम्हें जब काँपते हाथों से उठाया मैंने
धड़कनें तेज बहुत थी पर महसूस न हुईं
तुम्हारे माधवी से चेहरे को जो देखा मैंने
यूँ तो लोग बहुत से थे मेरे साथ वहाँ
लेकिन उस पल
तुम्हारी आँखों में ही दुनिया को देखा मैंने
वक़्त का पहिया कुछ क्षण थम सा गया
तुम्हें जब काँपते हाथों से उठाया मैंने।
धूप की पहली किरण सा एक एहसास हुआ
मन के रूपहले कोने में कोई कोपल फूटी
न जाने किस पाश में बंध गया मैं
जब तुमने धीरे से मेरी उँगली पकड़ी
सैकड़ों बादल नभ में उमड़ आए हो जैसे
कुछ इस तरह मेरी आँखों से वो ख़ुशी झलकी
शब्द तो सहस्त्र थे मन के झरने में मेरे
कख़ न होंठों से कह सका मैंने
तुम्हें जब काँपते हाथों से उठाया मैंने।
कुछ नया कुछ अनूठा सा
कोलाहल में सब्र के दो पलों सा
शरद की सुबह में ओस क़ी बूँदों सा
फागुन में गेहूं की पहली बाली सा
शिशिर में सूरज की लाली सा
जेठ की धूप में पेड़ की छांव सा
मीलों चलके मिले किसी गाँव सा
उर की शिराओं में अनुभूत किया मैंने
तुम्हें जब काँपते हाथों से उठाया मैंने।