ये खुदा अगर तेरे कलम की स्याही खत्म हो गई है तो मेरा खून लेल
क़रार आये इन आँखों को तिरा दर्शन ज़रूरी है
हर किसी का कर्ज़ चुकता हो गया
कैमिकल वाले रंगों से तो,पड़े रंग में भंग।
मन मेरा कर रहा है, कि मोदी को बदल दें, संकल्प भी कर लें, तो
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
कामुकता एक ऐसा आभास है जो सब प्रकार की शारीरिक वीभत्सना को ख
जिस कदर उम्र का आना जाना है
मीर की ग़ज़ल हूँ मैं, गालिब की हूँ बयार भी ,
इश्क जितना गहरा है, उसका रंग उतना ही फीका है
ठोकरें आज भी मुझे खुद ढूंढ लेती हैं
वास्तविकता से परिचित करा दी गई है
,✍️फरेब:आस्तीन के सांप बन गए हो तुम...
खुल गया मैं आज सबके सामने