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5 Mar 2020 · 1 min read

II सब बेमानी लगता है lI

ऐसे दौर में लिखना पढ़ना, सब बेमानी लगता है l
बुद्धि विवेक का मोल नहीं, सब नादानी लगता है ll

ध्यान ज्ञान सब धरा किनारे मूरख सरपट दौड़ रहा l
शांति धैर्य का दरिया विचलित अब तूफानी लगता है ll
===== ====== ======= ====== =====
मुझको मेरे हाल पे छोड़ो मेरी मंजिल यही कहीं l
शोहरत दौलत से ऊपर,सुखचैन मिलता कहीं-कहीं ll

मेरा कहना लिखना केवल भावों का संप्रेषण हैं l
बातें वो सब समझ गए जो अब तक मैंने नहीं कही ll

संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l

Language: Hindi
243 Views
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