II सब बेमानी लगता है lI
ऐसे दौर में लिखना पढ़ना, सब बेमानी लगता है l
बुद्धि विवेक का मोल नहीं, सब नादानी लगता है ll
ध्यान ज्ञान सब धरा किनारे मूरख सरपट दौड़ रहा l
शांति धैर्य का दरिया विचलित अब तूफानी लगता है ll
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मुझको मेरे हाल पे छोड़ो मेरी मंजिल यही कहीं l
शोहरत दौलत से ऊपर,सुखचैन मिलता कहीं-कहीं ll
मेरा कहना लिखना केवल भावों का संप्रेषण हैं l
बातें वो सब समझ गए जो अब तक मैंने नहीं कही ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l