II….मिलन के गीत…II
विरह से मैं ऊब गया अब ,
आज मिलन के गीत लिखूंगा l
निष्प्राण झील सी नीरवता तज,
अब मैं निर्झर नीर बनूंगा ll
विरह से मैं
प्यार भी था और वादे भी थे,
जीने मरने के इरादे भी थे l
सोनी ही नहीं सोनी रह गई ,
मैं ही क्यों महिवाल बनूंगा ll
विरह से मैं
मानव जीवन विश्वासों से है,
चंद प्यार की बातों से है l
दोनों ही नहीं रहे जहां पर,
ना उन सपनों के साथ रहूंगा ll
विरह से मैं
इस विरह के हवन कुंड में,
कितनी खुशियां होम हुई है l
औरों के लिए जिया आज तक,
अपने हित में आज जियूंगा ll
विरह से मैं
मेरे जीवन की संजीवनी है तू ,
मेरी लेखनी तू ना रुकना l
आज तक लिखी हकीकत ,
अब झूठे संवाद लिखूंगा ll
विरह से मैं
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l