II ख्वाब कि दौलत II
अगर साथ होते न,तब रात होती l
अलग से हमारी, यहां बात होती ll
न कोई परखता, कि कितनी कमाई l
वफाओं कि दौलत,अगर साथ होती ll
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वह सब का मालिक है,सब उस के सहारे हैंl
जज़्बात हैं जो अपने,सब उसने उतारे हैंlI
सब भूल चुका हूं अब,क्या अपना पराया है l
ख्वाब तुम्हारे सब ,अब ख्वाब हमारे हैं lI
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश