II एक चितवन से…..II
एक चितवन से ए मन चपल हो गया l
बात कुछ तो रही जो विकल हो गया l
जाने क्या कह गई अधखुली सी पलक l
मैं लूटा और जहां मेरा सकल हो गया ll
एक चितवन……
मैं तो सागर सा था सब समेटे हुए l
कितने तूफान तन से लपेटे हुए l
एक तुम जो मिले मन ए अंबर हुआ l
मन की गांठें खुली मैं सफल हो गया lI
एक चितवन………
कैसा रिश्ता बना एक मुलाकात में l
बात क्या क्या हुई अनकही बात में l
दर्द जीवन क लेकर भि चलना पड़ा l
भूल जाना भि कौशल विफल हो गया ll
एक चितवन…….
जो भी अपना रहा वो पराया हुआ l
ना बचा यहां कुछ छुपाया हुआ l
अब तो सांसे भि तेरे इशारों पे हैं l
सारा जीवन हि जैसे नकल हो गया lI
एक चितवन……..
मन छूलूं हुनर मुझको मालूम नहीं l
सही क्या गलत मुझको मालूम नहीं l
मन की मर्जी थी जैसी मैं करता गया l
समझ अमृत चखा पर गरल हो गया lI
एक चितवन …..
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l