चाल है कछुए जैसी
मंच को नमन!
संप्रेषित है कुंडलिया छंद ?
कछुए जैसी चाल पर,मंजिल पर है ध्यान।
एक नहीं जग में बहुत,ऐसे हैं प्रमाण।।
ऐसे हैं प्रमाण, उन्हीं के बनते काजा।
जो करते प्रयास,रंक से बनते राजा।।
कहै अटल कविराय,धरे हैं मस्ती ऐसी।
सतत करे जो काज,चाल है कछुए जैसी।।
?अटल मुरादाबादी ?