शून्य हो रही संवेदना को धरती पर फैलाओ
*जीता हमने चंद्रमा, खोज चल रही नित्य (कुंडलिया )*
मुझे पता है तू जलता है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
होते हैं हर शख्स के,भीतर रावण राम
घर को छोड़कर जब परिंदे उड़ जाते हैं,
गोपियों का विरह– प्रेम गीत।
देव उठनी
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
उसे खो देने का डर रोज डराता था,
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'