Ghazal
مٹ گیا ہوں یا بچ گیا ہوں میں
اپنے اندر بھی اب کہاں ہوں میں
لاکھ کاغز کہے میں زندہ ہوں
تیرےدل میں تو مر گیا ہوں میں
خامشی ہے یہ پختگی جیسے
وہ سمجھتا ہے پھر گیا ہوں میں
اب تیری آنکھ میں چمکتا ہوں
اپنے عہدے سے گر گیا ہوں میں
اب کوی شخص بھی نہیں رہتا
وسعتے عشق تک گیا ہوں میں
لفظ کی کھیتیاں ہیں ہم دردی
کتنےلفظوں سےگھر گیا ہوں میں
پوچھ کر حال مسکراتی ہے
آب دیدہ جدھر گیا ہوں میں
شاہ سب راستے ہیں خد تک ہی
جانے کتنے سفر گیا ہوں میں
मिट गया हूं या बच गया हूं मैं
अपने अन्दर भी अब कहां हूं मैं
लाख काग़ज़ कहे मैं ज़िन्दा हूं
तेरे दिल में तो म र गया हूं मैं
ख़ामशी है ये पुख्तगी जैसे
वो समझता है फिर गया हूं मैं
अब तेरी आंख में चमकता हूं
अपने ओहदे से गिर गया हूं मैं
अब कोई शख़्स भी नहीं रहता
वुस अते इश़्क तक गया हूं मैं
लफ़्ज़ की खेतियां हैं हम दर्दी
कितने लफ़्ज़ों से घिर गया हूं मैं
पूछ कर हाल मुस्कुराती है
आब दीदा जिधर गया हूं मैं
शाह सब रास्ते हैं खु़द तक ही
जाने कितने सफ़र गया हूं मैं
शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी
8299642677