*मृत्युलोक में देह काल ने, कुतर-कुतर कर खाई (गीत)*
विनम्र भाव सभी के लिए मन में सदैव हो,पर घनिष्ठता सीमित व्यक्
सर्द हवाओं का मौसम
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
मुखरित सभ्यता विस्मृत यादें 🙏
तमाम बातें मेरी जो सुन के अगर ज़ियादा तू चुप रहेगा
पिया मोर बालक बनाम मिथिला समाज।
प्रतीक्षा में गुजरते प्रत्येक क्षण में मर जाते हैं ना जाने क
" दिल गया है हाथ से "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
धैर्य के बिना कभी शौर्य नही होता है।