चलते हैं क्या - कुछ सोचकर...
मेरे गीतों के तुम्हीं अल्फाज़ हो
‘ विरोधरस ‘---6. || विरोधरस के उद्दीपन विभाव || +रमेशराज
जनता का पैसा खा रहा मंहगाई
दूरियाँ जब बढ़ी, प्यार का भी एहसास बाकी है,
बाण मां री महिमां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
--बेजुबान का दर्द --
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
आध्यात्मिक व शांति के लिए सरल होना स्वाभाविक है, तभी आप शरीर
आडम्बरी पाखंड
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
सुनसान कब्रिस्तान को आकर जगाया आपने
जुदाई का प्रयोजन बस बिछड़ना ही नहीं होता,