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9 Dec 2024 · 10 min read

Dr. Sunita Singh Sudha

Dr. Sunita Singh Sudha
आलेख
प्रोफेसर डॉ. सुनीता सिंह ‘सुधा’ जीवन परीचय | Professor Dr. Sunita Singh Sudha Jivan pariy
पता —-
नाम — डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
प्रोफेसर, हिंदी विभाग
मानविकी संकाय
ओम स्टर्लिंग ग्लोबल विश्वविद्यालय ,
हिसार — 125001 (हरियाणा)
मोबा० : 9671619238
मेल — sksinghsingh4146@gmail.com
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प्रोफेसर (डा.) सुनीता सिंह ‘सुधा’
शिक्षाविद,कवयित्री,ग़जलकर,कहानीकार का जीवन परीचय :-
प्रोफ़ेसर डाक्टर सुनीता सिंह इक्कीसवीं सदी की सुप्रसिद्ध कवयित्री, साहित्यकार, लेखिका, कहानीकार,गजलकार, छंदकार व शिक्षाविद हैं | प्रोफेसर ( डा.) सुनीता सिंह ‘सुधा’ हिंदी साहित्य के क्षेत्र में सशक्त हस्ताक्षर मानी जाती हैं । वर्तमान में ओम स्टार्लिंग ग्लोबल युनिवर्सिटी हिसार हरियाणा में हिंदी प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हैं |
साथ ही साहित्य सेवा से जुड़ी हैं । साहित्य और समाज का अभिन्न संबंध होने के कारण किसी भी साहित्यकार का साहित्य उसके समाज और जीवन के अनुभवों का प्रतिबिंब होता है डा. सुनीता सुधा के साहित्य के बारे में यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है ।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी डा. सुनीता सुधा का व्यक्तित्व हो या रचना उनकी विशेषता यही है कि उनमें बनावट नहीं है सहज सादगी ही उसका प्राण है । भारतीय जीवन के अनेक प्रश्न और पीड़ाओं से उपजी उनकी हर रचना एक सीधे-सादे लेकिन संवेदना की गहराई में धंसे जागरूक आदमी का संजीदा वयान है । आप अपने लेखन में मानवीय मूल्यों के प्रति सजग हैं ।
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा ’जी का जन्म 9 फरवरी 1978 को देवरिया जिला उत्तर प्रदेश के गाँव पडरी बाजार में हुआ था । आगे चलकर माता पिता ने बनारस में स्थाई निवास बना लिए । माता का नाम श्रीमती शकुंतला रानी श्याम सिंह ( मेडिकल शिक्षिका) थीं । पिता श्री कृष्ण प्रताप सिंह (शिक्षक) ।
आपके आठ बाबा तीन पुलिस विभाग में थे और चार बाबा शिक्षा विभाग में | आपके भाई सुनील सिंह ( शिक्षक ) | पति भी प्रोफ़ेसर हैं यो कहा जा सकता है कि पूरा परिवार शिक्षक व ज्ञान से संस्कारित है । कविता लेखन का बीज आपके पिता जी से आप में आया । आप के पिता भजन कीर्तन के शौकीन थे ।
स्वयं लिखते भी थे और रात-रातभर कीर्तन गाया कारते थे । वे पारिवारिक चक्र में फंस कर कुछ ज्यादा लेखन नहीं कर पाए ।प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा स्वभाव से सहज ,शांत व मिलनसार प्रवृत्ति की हैं । वे निरंतर गति में बने रहने को प्रमुखता देती हैं ।
कविता के बारे में आपका विचार है कि – ‘धरती की गंध,आकाश का खुलापन ,नदी का प्रवाह ,पर्वत की
एकाग्रता और यथार्थ जीवन के सत्य को महसूस करना ही ज्ञानात्मक संवेदना है । ”
आपके प्रसिद्ध गीत में गीत की व्याख्या कुछ इस प्रकार से है –गीत चिंतन के चमन में,
फूलता -फलता रहा ।
भाव गंगा में नहाकर
होंठ पर सजता रहा ।।
प्रीति पुलकित स्वाति बूँदें
सज रहा शृंगार तन ।
नेह आलोकित किरण-सा
बन गया दर्पण नयन ।।
पुष्प सुरभित पंख झलमल
सूर्य सा उगता रहा ।
गीत चिंतन के चमन में
फूलता- फलता रहा ।
कविता को अत्यंत जरूरी मानते हुए प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह कहती हैं कि-कविता सृष्टि के कण-कण में है बस इसे समझने सुनने के लिए अंतर्मन की जागृति आवश्यक सुधा है । वे लिखती हैं- कविता न्याय और मानवता के पक्ष में खड़ी होकर लड़ने की हिम्मत है । आगे कविता के बारे में अपनी चिंतन धारा में लिखती हैं- शब्दों के सागर को मथकर अर्थ के दुर्लभ मिलन पर बनती है एक कविता ।
वर्तमान समय की पीड़ा को महसूस करते हुए लिखती है-
कब से अपनों से कोई संवाद नहीं
कब संवाद हुआ यह भी तो याद नहीं
स्कूली शिक्षा गाँव में और देवरिया जिला में संपन्न करने के बाद बी.ए. (आनर्स हिंदी ), एम.ए. ( हिंदी), पीएच. डी.( हिंदी ) की उपाधि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से प्राप्त की । बचपन से कुशाग्र बुद्धि से पूर्णप्रोफ़ेसर डा. सुनीता सुधा लिखने ,पढ़ने की शौकीन रहीं । कविताएँ खूब लिखती थीं ।
पीएच. डी. करने के दौरान ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के योग केंद्र में योगा डिप्लोमा कोर्स में पंजिकृत हुईं वहाँ योग की कक्षा में भाग लेने शाम को जाया करती थी । वहीं पर उनकी मुलाकात एक ऐसे शख्सियत से हुई जो वहाँ के हेड थे । उन्होंने लेखन की राह चुनने के लिए सुझाव व मार्गदर्शन दिया ।
उनकी बातों से प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा इतनी प्रभावित हुईं कि रात भर में एक लेख लिख कर एक कापी उन्हें दी और एक कापी लेकर दैनिक जागरण प्रेस पहुँच गईं | वहाँ पर साहित्य संपादक से अपना लेख छापने के लिए अनुरोध कर रही थी ।
वहीं रामबलि शास्त्री जी मिले जो स्वयं साहित्यकार थे और लेखन में गहरी रुचि रखते थे । लेखन के क्षेत्र में पोफेसर डा. सुनीता सिंह सुधा को काफी प्रोत्साहित किए और लेखन की अच्छी समझ की जानकारी भी दिए ।
कहा जाता है न जहाँ चाह तहाँ राह | इस तरह से प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा ने पढ़ाई के साथ लेखन को कर्म की तरह जीया । देशभर के तमाम पत्र-पत्रिकाओ में लेख, इंटरव्यू, कविताएँ आदि छपने लगे |
बनारस से निकलने वाले पत्र सांध्य गांडीव, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान आदि पत्र पत्रिकाओं में फ्रीलांसर के रूप में काम किया | बनारस आकाशवाणी में हिंदी वक्ता के रूप में भी जुड़ी | पत्रकारिता में विशेष रूचि होने के कारण पी एच डी के बाद विवाहों प्रान्त सन 2009 में भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय से मास मिडिया कॉम की उपाधि ली
जीवन की सार्थकता और निरर्थकता इस बात में है कि वह क्या है से ऊपर क्या होना चाहिए ? के चिंतन का आधार है | इस दृष्टि से जीवन का तात्पर्य मानव जीवन के कार्य -कलाप,चिंतन, विकास, अंतर्द्वंद्व, मनोविज्ञान और अंतर्दृष्टि तथा बाह्य दृष्टि से है । जीवन की सार्थकता गति परिवर्तन के अनवरत चक्र से युक्त है ।
प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा के जीवन में भी परिवर्तन आया विवाहोपरांत वे बनारस से दूर लखीमपुर खीरी में गौतमबुध महाविद्यालय में असिस्टेंटप्रोफेसर के पद पर कार्यरत हुईं । पाँच वर्षों तक हलके फ्हुल्के लेखन से जुड़ी रहीं । घर गृहस्थी आदि की व्यवस्था में ज्यादा व्यस्त रहीं ।
उनके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया जब वे उत्तर प्रदेश से दूर हरियाणा राज्य में प्रोफेसर के पद पर अपने पति डा. शैलेंद्र कु सिंह के साथ विश्वविद्यालय में नियुक्त हुईं । डा. शैलेंद्र सिंह जी राजनीति विज्ञान विभाग में प्रोफेसर के पद पर आसीन हैं ।
इसी बीच इनका एक मात्र पुत्र साहित्य कुमार सिंह का जन्म हुआ । बेटे का पालन पोषण पारिवारिक जिम्मेदारी के बीच जो समय मिलता उसी में प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह कविताएँ आदि लिख लिया करती थीं पर उन कविताओं को वे कच्ची कविताएँ कहती हैं |
लेखन के लिए डॉ शैलेन्द्र जी हमेशा प्रोत्साहित करते रहे और समय भी देते रहे | कोरोना महामारी आने से पहले प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह और उनके पति डा. शैलेन्द्र कुमार सिंह मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक में थे उसी समय देश में 2020 जनवरी माह से कोरोना महामारी व लाकडाउन की समस्या शुरु हुई |विश्वविद्यालय भी मार्च में बंद कर दिया गया और सभी घर से ऑन लाइन पढ़ने लगे | इस बीच मैम को अच्छा समय मिलने के कारण वे ऑन ला इन ही देश भर के साहित्यकरों से जुड़ी |
प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा छंदबध रचना करने लगीं जैसे- गीत, सजल ,ग़ज़ल, दोहे, कुण्डलिया,चौपाई ,कहानी आदि प्रचुर मात्रा में लिखीं और उन्हें सोशल मीडिया साइट पर डालने लगीं । उनके लेखन को साहित्यकार, विद्वानों के बीच में काफी सराहना मिली | और शीग्र ही उन्हें एक विदूषी के रूप में पहचाना गया |
कविता को अत्यंत जरूरी मानते हुए प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह कहती हैं कि-कविता सृष्टि के कण-कण में है बस इसे समझने सुनने के लिए अंतर्मन की जागृति आवश्यक सुधा है । वे लिखती हैं- कविता न्याय और मानवता के पक्ष में खड़ी होकर लड़ने की हिम्मत है । आगे कविता के बारे में अपनी चिंतन धारा में लिखती हैं- शब्दों के सागर को मथकर अर्थ के दुर्लभ मिलन पर बनती है एक कविता ।
वर्तमान समय की पीड़ा को महसूस करते हुए लिखती हैं –
कब से अपनों से कोई संवाद नहीं
कब संवाद हुआ यह भी तो याद नहीं

वक्त कह कर यू पुकारा जा रहा रहा हूँ
एक दिन हूँ मैं गुजारा जा रहा हूँ

शहर में रईस कितने मुफलिसों की तलाश है अब
प्यास पर प्यास को धरे आदमी बदहवास है अब
तेरा एक दीवाना हूँ काफ़िर नहीं हूँ
असल में जो मैं हूँ वो जाहिर नहीं हूँ

समकालीन लेखन से प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा बहुत दुखी हैं और वे लिखती हैं- आज बहुसंख्यक कविताएँ लिखी जा रही हैं। कहीं घर में ,कहीं छत पर, कहीं बगीचे में ,कहीं काफी हाउस में बैठकर बस लिखी जा रही है । अंतर्मन का रास्ता तय करते हुए कवि की छटपटाहट के रूप में बाहर आ रही है पर ये सबके सब चुप हैं |

प्रोफ़ेस डा. सुनीता सिंह सुधा 15 वर्षों से लगातार साहित्यिक सेवा व गतिविधियों से जुड़ी हैं और निरंतर इस क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रही हैं। छंद गुरु के नाम में श्री राम नाथ साहू ननकी छतीस गढ़ और गीत लेखन में श्री विजय बगरी मध्य प्रदेश और ग़जल के क्षेत्र में आदरणीय विनय सागर जायसवाल बरेली उत्तर प्रदेश का नाम बड़े आदर के साथ लेती हैं | आपके ये तीन प्रमुख गुरु हैं | आप विविध प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व हैं | साहित्य का हर क्षेत्र आप के लिए है और हर क्षेत्र में आप पारंगत हैं |

प्रकाशित कृतियों में –
1.काव्यादर्श (काव्य संग्रह), आनलाइन देलही
2.साहित्यिक पत्रकारिता और मर्यादा (आलोचनात्मक) 2020 साहित्य संचय प्रकाशन दिल्ल्ली |
3 . शब्द सेतु (काव्य संग्रह) 2019 आन लाइन

हिंदी गद्य के पुरोधा (आलोचनात्मक ग्रन्थ ) 2021 अधिकरण प्रकाशन दिल्ली
संत वषना की काव्यानुभूति (आलोचनात्मक ग्रन्थ ) 2021 अधिकरण प्रकाशन दिल्ली
मेरी धरती मेरा गांव (काव्य संग्रह संपादित) 2021 अधिकरण प्रकाशन दिल्ली
भाग कोरोना भाग (काव्य संग्रह संपादित) 2020 आनलाइन
प्रीति के फाग (काव्य संग्रह संपादित) 2022 आनलाइन
सावन की फुहार (काव्य संग्रह संपादित)2023 आनलाइन
और समीर सुगंधित है (काव्य संग्रह) 2023 मधुशाला प्रकाशन ।
अगामी संग्रह
उदित हुआ मन का सूर्य (दोहा संग्रह),
बज्म- ए -इश्क (गजल संग्रह)
अर्थ दर अर्थ (कहानी संग्रह ) आदि ।
इन रचनाओं की अतिरिक्त और भी आगामी रचनाएं जो लेखन में है चल रही हैं | देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में आपके गीत ,सजल,ग़ज़ल,दोहे, कहानी आदि प्रकाशित होते रहते हैं । सोशल मीडिया साइट के विभिन्न साइटों पर आप सक्रिय हैं । फेसबुक पर 50 हजार से ज्यादा फालोवर हैं । प्रोफ़ेसर डा. सुनीता सिंह सुधा देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में पढ़ी जा रही हैं ।
काव्य कृतियों की विशेषताएं-
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ जी की कविताएँ अनुभूति जन्य, सोच में व्याप्त शुष्कता को मधुरस से अभिसिंचित करने, वैचारिक विकृतियों को सौंदर्य बोध कराने, भावनाओं में भरी दुर्गंध को दूर करने, लोकरंजन व लोक कल्याण की भावना से भरे गीत हैं | गीत संग्रह ‘और समीर सुगंधित है’ को प्रस्तुत कर एक पावन अनुष्ठान जैसा कार्य किया है, यह निसंदेह एक साहित्यिक उपहार है। आज परस्पर पैदा होती खटास,युद्ध की विभीषिकाओं, बढ़ते आतंक के समय में विखंडित होते सामाजिक ताने बाने को पुनर्जीवन प्रदान करने के लिए रसप्लावित, प्रीति में पगी सहज- समर्पण व सहयोग की मानसिकता को उकेरते गीतों की महती आवश्यकता है, जो आपस में आए अंतराल को भरने में सक्षम हैं।
‘सुधा’ जी एक अद्भुत, अनुपम रचना शिल्पी हैं | गीत की गरिमा से ओत- प्रोत आप के काव्य संग्रह में लयात्मकता के साथ शैली का सौंदर्य बोध भी दर्शनीय है।
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ तरुणाई की पनघट पर सपनों की गागर को निराले अंदाज के साथ भरकर जब चलती हैं। तो प्रकृति में एक दीवानगी छा जाती है। यह कोमल कलियों की गलियों में शूलों से सावधान रहने की चेतना को जगाती हैं।
कोमल कलियों की गलियों में काँटों के लश्कर हैं
पाव सम्भल कर रखना चिटिल करने में तत्पर हैं
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ की लेखन क्षमता बहुत अद्भुत है तभी इतनी कम आयु में ही गीत संग्रह “और समीर सुगंधित है” साहित्य पटल पर आ गया है । सुधा जी की भाषा साहित्यिक होते हुए भी आम आदमी के हृदय तक पहुंचने में सक्षम हैं।
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ की साहित्यिक काव्य भाषा सरल एवं मधुर है, इनके गीत भाव एवं कला पक्ष, व्याकरण, भाषा शैली तथा अलंकारों से परिपूर्ण हैं । आप जैसे- जैसे इनकी गीत पढ़ते जायेंगे, उतने ही आनंदित होते चले जायेंगे। प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ का आज हिंदी तथा उर्दू साहित्यिक क्षेत्र में सूर्य के समान उभरता हुआ नाम है।
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ साहित्यक पत्रकारिता और मर्यादा’ (आलोचनात्मक) ग्रन्थ में बताया है कि – ‘मर्यादा’ सचित्र मासिक पत्रिका थी। मासिक पत्रिकाओं का प्रभाव साप्ताहिक पत्रों की तुलना में अधिक स्थाई होता है। फलस्वरुप इनमें प्रकाशित की जाने वाली सामग्री अधिक वैचारिक एवं सारगर्भित होती है। मासिक पत्रिका अपेक्षाकृत अधिक विश्रांत क्षणों में चिंतन और विचार की प्रेरणा देने का काम करती हैं ।अतएवं इनके द्वारा पाठक के अंतःकरण पर जो प्रभाव पड़ता है, वह अधिक गहरा तथा चिरकालिक होता है।
सांस्कृतिक संघर्ष की इस ऐतिहासिक भूमिका को हमारे पाक्षिकों और मासिक पत्रिकाओं ने संपूर्ण आत्मविश्वास से पूरा किया। वह समस्त पत्र जो केवल मात्र साहित्यिक अथवा सांस्कृतिक उद्देश्य लेकर चलते रहे । इनमें सरस्वती पत्रिका का विशेष स्थान है जिसे सामान्य रूप से अराजनीतिक पत्रिका के रूप में देखा जाता है। पर इन्हीं के साथ ‘मर्यादा’ पत्रिका ऐसी थी जो साहित्य के साथ राष्ट्र की राजनीतिक चिंतन को लेकर चल रही थी। मर्यादा का जन्म ही हिंदी पाठकों को उच्च कोटि की साहित्य शिक्षा के साथ राजनैतिक विषयों की शिक्षा देने के उद्देश्य से हुआ था।
पत्रिका का मूल उद्देश्य सदैव जनता की जागृति और जनता तक विचारों का सही संप्रेषण करना रहा है अतः इस पुस्तक का महत्व व इसकी उपयोगिता स्वत: ही सिद्ध हो जाती है। इनकी यह पुस्तक छात्रों में अध्ययन प्रेमियों के लिए युगों-युगों तक उपयोगी रहेगी।
वर्तमान युग में समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं का महत्व निरंतर बढ़ता जा रहा है पत्रकारिता के महत्व को आज इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की पत्रकारिता ने बहुत बढ़ा दिया है।
प्रोफ़ेसर डॉ सुनीता सिंह ‘सुधा’ शब्दों की परखी हैं। उनका भाषा ज्ञान अत्यंत उच्च कोटि का है। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी खासियत है। व्यंग्य की सटीकता एवं सजीवता अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्म स्पर्शी बना देती है।
सम्मान /पुरस्कार
साहित्य सृजन पर आपको राज्य एवं राष्ट्र स्तर पर निम्न सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है-
पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी से डॉ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान 2019।
2. आनंद ट्रस्ट दिल्ली से साहित्य के क्षेत्र में सोशलडेवलपमेंट सम्मान 2019।

3. विश्व हिंदी रचनाकार मंच उत्तर प्रदेश से साहित्य रत्न सम्मान मार्च 2022।

4. अंतर्राष्ट्रीय स्वर साधना उत्तर प्रदेश की ओर से आदर्श रचनाकार सम्मान जुलाई 2022।

5. हिंदी गौरव सम्मान (हिंदी संस्थान दिल्ली) 31 जुलाई 2022।

6. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान भारत गौरव संस्थान उत्तर प्रदेश सितंबर 2022।

7. बुद्धि राज सेन सम्मान, (गजल के क्षेत्र में) विश्व हिंदी सम्मेलन, विश्व हिंदी साहित्य संस्थान प्रयागराज 2023

8. कवयित्री चंपा गीतश्री अलंकरण 11 फरवरी 2023, पंचम राष्ट्रीय प्रज्ञा सम्मान ।

9.महादेवी वर्मा साहित्य सम्मान विश्व हिंदी शोध संवर्धन एवं हिंदी विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय । 17 मार्च 2024

सदस्यता- अनंत आकाश हिंदी साहित्य संसद मंच वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के अध्यक्ष नवंबर 2019, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी दिल्ली, नवोदित साहित्यकार मंच लखनऊ (उत्तर प्रदेश), भारत उत्थान न्यास मंच कानपुर (उत्तर प्रदेश), विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान इलाहाबाद की सदस्य हैं |

Language: Hindi
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