विघ्न-विनाशक नाथ सुनो, भय से भयभीत हुआ जग सारा।
किताबों में सूखते से गुलाब
स्त्रीलिंग...एक ख़ूबसूरत एहसास
युद्ध घोष
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
उलझी हुई है ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ सँवार दे,
*अपना-अपना दृष्टिकोण ही, न्यायाधीश सुनाएगा (हिंदी गजल)*
ग़ज़ल _ रूठते हो तुम दिखाने के लिये !
तुम कहते हो की हर मर्द को अपनी पसंद की औरत को खोना ही पड़ता है चाहे तीनों लोक के कृष्ण ही क्यों ना हो
तुम वह दिल नहीं हो, जिससे हम प्यार करें
हो कहीं न कहीं ग़लत रहा है,
ज्ञान के दाता तुम्हीं , तुमसे बुद्धि - विवेक ।
King of the 90s - Television
प्यार का नाम मेरे दिल से मिटाया तूने।