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मैं घर का मेंन दरवाजा हूं।
manorath maharaj
उम्र नहीं बाधक होता।
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मन-क्रम-वचन से भिन्न तो नहीं थे
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मन मसोस कर।
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मन ही मन घबरा रहा था।
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मलता रहा हाथ बेचारा
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एक अधूरी कविता।
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समझिए बुढ़ापे में पग धर दिये।
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हंसी का महत्व
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दुनिया में मैं कुछ कर न सका
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सिस्टमी चाल में चलना सीखो (एक व्यंग्य रचना))
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उलझन
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सत्य को फांसी पर चढ़ाई गई
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मेरी जिंदगी की दास्ताँ ।
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दोहा
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सब दिन होत न समान
manorath maharaj
निर्भय होकर जाओ माँ
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बात ही कुछ और है
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नववर्ष की शुभकामना
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मानवता का सन्देश
manorath maharaj
मन को मैं समझा रहा हूँ |
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कलम आज उनको कुछ बोल
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बढ़ते मानव चरण को
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आज भी मुझे याद है
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भ्रूण व्यथा
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