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आएगा ज़माना उलटबांसी का, कह गये थे संत कबीर
Shreedhar
कुछ असली दर्द हैं, कुछ बनावटी मुसर्रतें हैं
Shreedhar
कुछ हम निभाते रहे, कुछ वो निभाते रहे
Shreedhar
आने दो कुँवार, खिलेगी सुनहरी धान
Shreedhar
तुम्हारी गली से आने जाने लगे हैं
Shreedhar
सिर्फ़ तुम्हें सुनाना चाहता हूँ
Shreedhar
कुछ हम निभाते रहे, कुछ वो निभाते रहे
Shreedhar
जबसे देखा शहर तुम्हारा, अपना शहर भूल गए
Shreedhar
जहाँ मुर्दे ही मुर्दे हों, वहाँ ज़िंदगी क्या करेगी
Shreedhar
अब ठहरना चाहता हूँ, कुछ दिनों
Shreedhar
फ़ानी है दौलतों की असलियत
Shreedhar
तक़दीर का क्या, कभी रूठी, कभी संभल गई
Shreedhar
दर्द-ओ-ग़म की टीस हंसाते रहती है
Shreedhar
आते जाते रोज़, ख़ूँ-रेज़ी हादसे ही हादसे
Shreedhar
फ़ासले ही फ़ासले हैं, मुझसे भी मेरे
Shreedhar
जब से देखा रास्ते बेईमानी से निकलते हैं
Shreedhar
पहचान लेता हूँ उन्हें पोशीदा हिज़ाब में
Shreedhar
दो ग़ज़ जमीं अपने वास्ते तलाश रहा हूँ
Shreedhar
दिया जा रहा था शराब में थोड़ा जहर मुझे
Shreedhar
जोख़िम दग़ा का अज़ीज़ों से ज़्यादा
Shreedhar
शाम वापसी का वादा, कोई कर नहीं सकता
Shreedhar
‘मंज़र’ इश्क़ में शहीद है
Shreedhar
तुम कहो उम्र दरकिनार कर जाएं
Shreedhar
मौसमों की माफ़िक़ लोग
Shreedhar
ये इश्क़ है हमनफ़स!
Shreedhar
किसी बिस्तर पर ठहरती रातें
Shreedhar
अब वो रूमानी दिन रात कहाँ
Shreedhar
हमसफ़र नहीं क़यामत के सिवा
Shreedhar
रुसवाई न हो तुम्हारी, नाम नहीं है हमारा
Shreedhar
लंबे सफ़र को जिगर कर रहा है
Shreedhar