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कई चोट हृदय पर खाई है
Trishika S Dhara
हरे-हरे खेतों की ओढ़नी
Trishika S Dhara
ख़ास से आम बनाना ज़रूरी था
Trishika S Dhara
मेघ बरसते हैं आँगन में
Trishika S Dhara
तू रूबरू हो कर भी हमसे मिलता नहीं
Trishika S Dhara
पत्थर से दिल लगाने चले हैं
Trishika S Dhara
मेरा मन बैरागी हो गया
Trishika S Dhara
आँखों में मायूसी का मंज़र क्यों है
Trishika S Dhara
पूस की ठंडी रात में
Trishika S Dhara
ये रात बावरी मुझे बेचैन कर जाएगी
Trishika S Dhara
मुद्दतों से तुम्हारा दीदार न मिला
Trishika S Dhara
बादलों की खिड़की से
Trishika S Dhara
सदियाँ लगीं संभलने में
Trishika S Dhara
त्याग के सारी भाषाएँ
Trishika S Dhara
तुम से उम्मीद–ए–हिमायत बहुत है
Trishika S Dhara
मैंने कितना ढूंढा उस को
Trishika S Dhara
पेशे से मज़हब का ठेकेदार लगता है
Trishika S Dhara
उकता कर हम ने ये काम कर दिया
Trishika S Dhara
मैंने कितनी अदाएँ बदलीं
Trishika S Dhara
वो चाहतें हैं हमको कीचड़ में गिराना
Trishika S Dhara
मिरे आगे ज़िक्र-ए-अग़्यार क्यों करते हो
Trishika S Dhara
हर गीत हर संगीत
Trishika S Dhara
वो रोज़ निकालता है ऐब जहाँ में
Trishika S Dhara
संगदिल लोगों पे जाँ-निसार मत कीजिए
Trishika S Dhara
बरसों से जिन्हें अपना माना
Trishika S Dhara