Satyendra kumar "माँ" - काव्य प्रतियोगिता 1 post Sort by: Latest Likes Views List Grid Satyendra kumar 12 Nov 2018 · 1 min read आरुष किरण माँ आशा सारी झूठ हुई अब, चारो और हताशा है सपने सारे टूट गए अब, चारों और निराशा है राह में राही रूठ गए अब, अपना नहीं सुहाता है तम के... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 9 50 916 Share