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About the book
मुझे नहीं मालूम कि कविता बैठकर कैसे लिखी जाती है, मैंने सदैव ही चलते-चलते कविताएँ लिखीं। जहाँ जैसे भाव दिखे, हृदय के तारों से टकराए और कविता की परिणिति स्वतः... Read more