Ashfaq Ahmad Khan
कहानी “ब्रह्मानंद का स्वर्ग दौरा”
लेखक अशफ़ाक अहमद ख़ां
यूपी के कई जिले पिछले दिनों सूखे की चपेट में थे। किसान पूरे सावन इंद्रदेव की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते रहे ,इंद्र देव को खुश करने के लिए बच्चों ने काल कलौटी खेली, बड़े बूढ़ों ने मेंढक मेडकी की शादी कराई, महिलाओं ने रात को हल चलाएं परंतु इंद्र जी का रिस्पांस शून्य रहा। सूखे खेतों में पड़ी मोटी दरारों की तरह इन्द्रदेव से किसानों के रिश्तों में भी दरारें पड़ गई। इंद्र की ऐसी बेरुखी से आहत एक किसान ने देवराज इंद्र की चूड़ी टाइट करने के लिए तहसील प्रशासन में उनके विरुद्ध शिकायत दर्ज करा दी। किसान ने आरोप लगाया कि देवराज अपने कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाहऔर पक्षपाती है ।खरीफ़ के ऐन मौके पर उन्होंने वर्षा रोक रखी है, जबकि प्रदेश के ही कई जनपदों में वर्षा हो रही है।
पृथ्वी लोक पर किसी देवता के विरुद्ध यह पहली शिकायत थी, वह भी राष्ट्रवादी सरकार से, खबर जंगल की आग की तरह फैल गई ,विपक्षी दल सरकार पर कार्यवाही का दबाव बनाने लगे ,वृंदावन के लोग सबसे अधिक आक्रोशित थे ,वे आरोप लगाते कि देवराज त्रेतायुग में हुई अपनी पराजय का कलयुग में बदला ले रहे हैं। हालात की नजाकत को भांपते हुए जिला प्रशासन ने आनन-फानन अधिकारियों की बैठक बुलाई जिसमें यह तय किया जा सके कि शिकायत की जांच किस से करवानी है ।सभी पहलुओं पर लंबे विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि इंद्रदेव के विरुद्ध दर्ज शिकायत की जांच लेखपाल ब्रह्मानंद विश्वकर्मा से कराई जाए। ब्रह्मानंद 47-48 साल के अधेड़ व्यक्ति हैं, सांवला रंग, छोटा कद, लंबी भरी नोंकदार मूछें ,छोटे बाल, सावन के महीने में सिर मुंडवाना उनके नियम में शामिल है ।फैशन और आधुनिकता से वे कोसों दूर भागते थे ,उनका मानना है कि आज के युवाओं के नैतिक चरित्र के ह्रास का मुख्य कारण पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है । ब्रह्मानंद साम, दाम ,दंड ,भेद में से दाम हटाकर बाकी सभी नियमों को अपनाते थे।अलबत्ता खसरा, खेतौनी, वरासत में जो भी सोलह-बत्तीस आना मिल जाता उसी में संतुष्ट रहते। मांगने की आदत उनमें न थी। हल्का लेखपाल के तौर पर अपने हलके में वर्षों से विवादित मोहर्रम के ताजिए के रास्ते को घंटों में अपनी कुशल कूटनीति से सुलझा दिया करते थे। होलिका दहन स्थल के विवाद को भी सलटाने में ब्रह्मानंद का कोई जोड़ पूरे तहसील में नहीं है। तहसील दिवस की शिकायतों का चुटकी बजाते निपटारा कर देने के आदी ब्रह्मानंद इस बार बुरे फंसे थे । वज्र धारी देवराज इंद्र से पूछताछ करना वह भी दूसरे लोक में साधारण बात नहीं थी । बहरहाल झटपट आदेश टाइप हुआ तहसीलदार साहब ने पिंड छुड़ाते अंदाज में जांच आदेश लेखपाल ब्रह्मानंद को थमाते हुए कहा कि वे कल ही इंद्रलोक के लिए निकल जाए ताकि समय से जांच रिपोर्ट शासन को भेजी जा सकें । ब्रह्मानंद अनमने मन से आदेश बाइक की डिक्की में रख कर घर की ओर चल दिए। एक अजीब सी बेचैनी थी मन में , पिछले 22 साल की नौकरी में पहला मामला था जब वे किसी जांच को लेकर इतने दुविधा में थे । केस की गंभीरता ही ऐसी थी कि एक तरफ लाखों किसानों की जीविका और जिला प्रशासन का इकबाल दाँव पर था तो वहीं दूसरी तरफ इंद्र जैसा घाघ, चतुर और बेहद शक्तिशाली देवता जिसकी कूटनीति आज के दौर के नेताओं को भी पानी पिला दे , ऐसे देवता को अनुशासन का पाठ पढ़ाते हुए अपनी बात मनवाना किसी आदमखोर शेर को शाकाहारी बनाने जैसा था।
करवट बदलते जैसे तैसे रात कटी भोर में मुर्गे की पहली बांग के साथ ही ब्रह्मानंद चलने की तैयारी करने लगे। जरूरी कागजात व बस्ता बांध लिया। मोटरसाइकिल की टंकी के पास कान सटाकर गाड़ी को झटके से हिलाया पेट्रोल के हिलोरों की आवाज कान तक पहुंची तो संतुष्ट भाव से गाड़ी को किक मार दी और स्वर्ग लोक के लिए चल पड़े । बीती रात अर्धनिद्रा में ही लेखपाल साहब ने देवराज के लिए प्लान बना लिया था फिर भी आत्मविश्वास में स्थिरता नहीं थी ज्वार भाटा की तरह हर क्षण उठता गिरता रहता।
ब्रह्मानंद धार्मिक प्रवचनों में अक्सर सुना करते थे कि स्वर्ग का मार्ग बहुत कठिन है, आज देख भी लिया । उबड़ खाबड़ दुर्गम मार्ग पर घंटों हिचकोले खाने के बाद आखिरकार उन्हें स्वर्ग की सीमा नजर आने लगी। सीमा सुरक्षा बल के जवान अपने पौराणिक वर्दी में थे । सिर पर पीली धातु से बनी गोल नोकदार टोपी , हाथों में लंबे नुकीले भाले और पैरों में खड़ाऊँ।
ब्रह्मानंद ने देखा कि स्वर्ग सीमा पर जगह-जगह चेक पोस्ट तो बनी है पर सैनिकों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है , ऐसा लगता है कि सुरक्षा बलों का सारा जोर घुसपैठ रोकने पर ही केंद्रित है ।अपवाद को छोड़ दें तो स्वर्ग में जीवित व्यक्ति का प्रवेश प्रतिबंधित है । चेक पोस्ट पर लगी मशीनें विस्फोटक पदार्थो की जांच नहीं करती बल्कि उनका एकमात्र काम यह बताना रहता है कि व्यक्ति जीवित है अथवा मृत , यदि मशीन जीवित बता दें तो सुरक्षा में लगी सभी यूनिट अलर्ट मोड पर हो जाती हैं , और त्वरित कार्रवाई करते हुए घुसपैठियों को स्वर्ग सीमा से दूर मृत्युलोक में वापस फेंक दिया जाता है।
तमाम चेक पोस्टों पर सरसरी नजर दौड़ाते हुए ब्रह्मानंद की नजर एक पोस्ट पर सहसा स्थिर हो गई । पोस्ट पर लिखा था ” केवल राजनयिक प्रवेश हेतु ” ब्रह्मानंद ने उस चेक पोस्ट से चंद कदम दूर अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर दी डिग्गी से बस्ता निकाला और हैंडिल लॉक कर चेक पोस्ट की तरफ बढ़ गए । चेक पोस्ट इंचार्ज दशहरे के रावण की तरह कॉस्टयूम से लदा था । चेहरे की भंगिमा में जबरन क्रोध मिला था , सांसों के खिंचाव से एक महीन मगर कर्कश आवाज निकलती थी। उसने ब्रह्मानंद को सवालिया निगाहों से घूरा । ब्रह्मानंद ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वे पृथ्वीलोक के भारत राष्ट्र के प्रतिनिधि के तौर पर आए हैं। देवराज इंद्र को एक मामले में नोटिस तमील कराना है । सुरक्षा अधिकारी ने पुनः ब्रह्मानंद को सिर से पैर तक पैनी निगाहों से देखा फिर कुछ सोचते हुए कंट्रोल रूम में दाखिल हो गया । बाहर ब्रह्मानंद को रेडियो ट्रांसमीटर जैसी महीन अस्पष्ट आवाज सुनाई दे रही थी। लगभग 10 मिनट बाद जब सुरक्षा अधिकारी कंट्रोल रूम से बाहर आया तो उसके चेहरे पर राजनयिक मुस्कान थी। उसने अपने अधीनस्थ सैनिकों को आदेश देते हुए कहा कि वे लेखपाल साहब को प्रोटोकाल के तहत ससम्मान महाराज इंद्र के दरबार में पहुंचा आएं। सफेद कलेरास घोड़ों पर सवार एक सैनिक टुकड़ी ब्रह्मानंद के पास आकर रुकी। घोड़ों के बीच एक हष्ट-पुष्ट भैसा भी मौजूद था जिसकी पीठ पर लाल कालीन के कवर वाली काठी बंधी हुई थी । ब्रह्मानंद अचरज में पड़ गए, कुछ अटकल लगाते ,इससे पहले ही माजरा भाँपते हुए घोड़े वालों में से एक सैनिक ने अदब से झुकते हुए नरम लहजे में ब्रह्मानंद से कहा कि स्वर्ग लोक में मानव शरीर को केवल भैंसे की सवारी की ही इजाजत है। स्वर्ग लोक का यह कानून यमराज के प्रस्ताव पर सर्वसम्मति से पारित हुआ है। यह नियम आदि काल से लागू है राजनयिक प्रोटोकॉल के तहत अंतर केवल इतना है कि यमराज की जगह आप अपनी सवारी स्वयं हाँक सकेंगे। ब्रह्मानंद कर भी क्या सकते थे ,सो बस्ता हाथ में दबाए भैंसे पर चढ़ गए। उनके आगे और पीछे घुड़सवारों का दस्ता साथ चल रहा था ।ड्यूटी के दौरान ऐसी विचित्र सवारी की कल्पना ब्रह्मानंद ने सपने में भी नहीं की थी।परन्तु उनके लिए यह नया अनुभव भी नहीं था। बचपन में स्कूल से छुट्टी के बाद भैंस चराते हुए घंटों उसकी पीठ पर सवार रहते। हांकने वाले डंडे को तलवार , भैंस को चेतक और स्वयं को महाराणा प्रताप समझना उन दिनों की नियमित कल्पना थी। इन्हीं कल्पनाओं के बीच एक बार उनके चेतक ने उन्हें जमीन पर पटक भी दिया बाएं हाथ पर 40 दिन प्लास्टर भी चढ़ा रहा पर भैंस की सवारी का मोह तब भी ना छूटा । बचपन की स्मृतियों को झटक कर लेखपाल साहब वर्तमान में लौट आए। इंद्र के दरबार की तरफ जाते हुए स्वर्ग का अद्भुत नजारा था। खूबसूरत चौड़ी सड़क के दोनों किनारों पर सुगंधित फल -फूलों से लदे पेड़ों की श्रृंखलाएं मानो साथ साथ चल रही थी।
चंपा -चमेली , मोगरा की मिश्रित सुगंध चारों ओर फैली थी ।सड़क के दोनों तरफ भगवान विश्वकर्मा का एंटीक आर्टिटेक्चर, भवनों के रूप में दिख रहा था ।ऐसे खूबसूरत कलात्मक भवन निर्माण को देखकर ब्रह्मानंद खुद को गौरवान्वित महसूस करने लगे आखिरकार उनके नाम के साथ भी विश्वकर्मा जो जुड़ा है। सैनिक टुकड़ी की अगवानी में ब्रह्मानंद का भैंसा अपनी मस्त चाल में चला जा रहा था, उधर स्वर्ग लोक के सियासी हलके में भी लेखपाल की आमद की खूब चर्चा हो रही थी।
इंद्र के मंत्रिमंडल का एक बड़ा तबका सत्ता के केंद्रीकरण से असंतुष्ट था। दुनिया के तमाम राष्ट्रों की तरह वे भी स्वर्ग लोक में लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू करने के पक्षधर थे ।वे देवता दल के नेता इंद्र की राजनीतिक व प्रशासनिक शक्तियों को कम करना चाहते थे और ऐसे अवसर की तलाश में रहते थे जिससे इंद्र पर दबाव बनाया जा सके । लेखपाल ब्रह्मानंद की आमद में उन्हें एक उम्मीद की किरण दिख रही थी।
आधुनिक काल में स्वर्ग लोक का सूचना तंत्र भी पूरी तरह से बदल चुका था। नारद मुनि अब प्रधान संपादक बन चुके थे। खबरों के प्रकाशन के एवज में बाकायदा अब विज्ञापन लिया जाता था। शिवरात्रि, जन्माष्टमी ,होली दीवाली, बड़े मंगल आदि अवसरों पर देवताओं से नारद जी विज्ञापन के बड़े पैकेज उठाते थे । विश्वकर्मा जी बड़े विज्ञापन दाताओं में प्रमुख थे ।भवन निर्माण सामग्री की गुणवत्ता, नक्शे के अनुरूप निर्माण और कार्य समाप्ति की निर्धारित अवधि जैसे मामलों में किसी प्रकार का बखेड़ा ना हो इसके बदले नारद जी को बड़ा विज्ञापन दिया जाता है।
ब्रह्मानंद का काफिला अब सदर चौराहे से राजदरबार की तरफ मुड़ चुका था। सड़क पहले से अधिक सुंदर और चौड़ी प्रतीत हो रही थी। कतारों में लगे आकर्षक छायादार पेड़ों के गले में इश्तेहारी होर्डिंग्स लटक रही थीं जिन पर इंद्र सरकार द्वारा संचालित योजनाओं का बखान छपा था। एक होर्डिंग पर अंग्रेज़ी में मोटे अक्षरों में लिखा था ” हैवन गॉट टैलेंट ”
होर्डिंग का सारांश यह था कि स्वर्ग लोक के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद प्रतिभावान महिला कलाकारों को राष्ट्रीय मंच पर नृत्य प्रतियोगिता कराना तथा उनमें से दस श्रेष्ठ कलाकारों को चुनकर राज दरबार में शाही नृत्यकी के पद पर नियुक्त करना। इंद्र के दरबारी रोज-रोज उर्वशी ,रंभा और मेनका आदि अप्सराओं के कुचिपुड़ी , कथक कली व अन्य शास्त्रीय नृत्य को देख कर बोर होने लगे थे , कई देवता बेली डांस, पोल डांस, पॉप डांस और हरियाणवी नृत्य के तलब गार थे ।उन्हीं की मांग पर यह नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन हो रहा था।
सड़क के दोनों तरफ जगह-जगह यातायात प्रहरी मुस्तैदी से स्टेचू की भांति खड़े थे। ब्रह्मानंद हर एक चीज को बारीकी से देखते हुए गुजर रहे थे। कुछ देर चलने के बाद उनका काफिला राज महल के प्रांगण में आ गया था। विशाल ,अद्भुत ,सुंदर महल ।वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना ,दूध जैसी सफेद भव्य इमारत के बीच वाली ऊंची गुंबद में पीले धातु की छड़ी में लाल रंग का तिकोना ध्वज मंद हवाओं में झूम रहा था। ध्वज के मध्य में चार दांतों वाले सफेद हाथी की आकृति बनी हुई थी। महल में मुख्य द्वार से जुड़ी सफेद सीढ़ी के ठीक सामने कुछ दूरी पर सफेद पत्थर का एक गोलाकार हौज था, जिसके मध्य में सोने के गोल नक्काशी दार फव्वारे चारों दिशाओं में फुहारे बिखेर रहे थे। फव्वारों के चारों तरफ सुगंधित फूलों की क्यारियां थी, जिनके फूलों पर पड़ने वाली फुहारों की नन्हीं बूंदें किसी को भी अपनी सुंदरता से वशीभूत कर सौंदर्य रस का कवि बना दे। महल के दाएं मैदानी हिस्से को रॉयल पार्किंग कह सकते थे। विशाल छायादार पेड़ों के नीचे इंद्र का प्रिय चार दांतों वाला सफेद हाथी एरावत सरकारी बाबू की तरह आलसी मुद्रा में बैठा था। पेड़ के दूसरी तरफ इंद्र का चहेता घोड़ा उच्चै: श्रवा किसी बात से चिढ़ कर जोरों से हिनहिना रहा था ,जवाब में सारथी मातलि उसे भद्दी गालियां देकर शांत करने की चेष्टा कर रहा था। दूसरे पेड़ों के नीचे देवता वरुण ,अग्नि , सूर्य आदि के वाहन खड़े थे। सीढ़ियों के बाई तरफ सोमरस के कई रेस्तरां थे जहां पर नृत्य संगीत के साथ सोमरस का रसस्वादन करने की व्यवस्था थी। ब्रह्मानंद की सवारी इसी तरफ़ आकर रुकी । भैंसे से उतरते ही मेजबानों का एक शिष्टमंडल उन्हें राज दरबार में ले जाने के लिए आ पहुंचा ,इसी बीच प्रांगण में घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज सुनाई दी ब्रह्मानंद ने मुड़कर देखा एक रथ पर बड़ा सा विचित्र छाता रखा हुआ था। रथ के कोनों पर प्रेस का मोनोग्राम छपा था और मध्य में बोल्ड अक्षरों में “स्वर्ग आज तक” लिखा था। ब्रह्मानंद समझ गए कि महाभारत काल के लाइव रिपोर्टर संजय अभी रिटायर नहीं हुए हैं ,वह इन दिनों स्वर्ग लोक के चौथे स्तंभ बनकर प्रिंट मीडिया के नारदजी को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की लाइव रिपोर्टिंग से कड़ी टक्कर दे रहे हैं। नारद जी की अपेक्षा संजय का समाचार प्रस्तुतीकरण ज्यादा आक्रामक , सनसनीखेज, मसालेदार और मनोरंजक होता है। स्वर्ग वासियों का एक बड़ा वर्ग “स्वर्ग आज तक” को पसंद करता है जबकि वामपंथी स्वर्गवासी उसे इंद्र समर्थक मानते हैं। इससे पहले कि संजय रथ से उतरकर ब्रह्मानंद की तरफ बढ़ते, माजरा भांप कर एक मेजबान ने लेखपाल का हाथ पकड़ लिया और तेजी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए। राज दरबार के मुख्य द्वार पर कई अप्सराओं के साथ देवता वरुण स्वागत के लिए खड़े थे । उनके हाथों में फूलों का एक बड़ा गुलदस्ता था ,अप्सराएं थालों में फूलों की पंखुड़ियां लिए पुष्प वर्षा के लिए तैयार थी ।वरुण देव ने आगे बढ़कर राजनयिक सत्कार किया गुलदस्ता थमाते हुए गर्मजोशी से हाथ मिलाया और राजदरबार में चलने का इशारा किया । अप्सराओं ने पुष्प वर्षा शुरू कर दी । ब्रह्मानंद आत्ममुग्ध हुए जा रहे थे। ऐसा स्वागत उन्हें अपनी शादी के दिन भी नसीब नहीं हुआ था। सालियां शर्मीली स्वभाव की थी, इसलिए दरवाजे की ओट से ही कच्चे चावल मारती थी परंतु यहां पर अप्सराएं एयर होस्टेस की तरह आंख मिला कर मुस्कुराते हुए बड़ी आत्मीयता से उन पर पंखुड़ियां उछाल रही हैं। राज दरबार की चौखट पर पहुंचते ही लंबी मूछों वाले एक द्वारपाल ने ऊंची आवाज में लेखपाल के आने की खबर दरबार में दी ।इंद्र को छोड़कर बाकी सभी दरबारी अतिथि सत्कार में खड़े हो गए। ब्रह्मानंद ने हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन किया और खाली पड़ी कुर्सी पर बैठ गए। दरबार का अद्भुत नजारा था। फर्श पर सफेद धुएं जैसा कुछ बिखरा था। बैकग्राउंड पूरी तरह काला ऐसा लगता था कि इंद्र दरबार ऊंचे काले आकाश में कहीं तैर रहा हो। सभी दरबारी रामानंद सागर के धारावाहिक पात्रों जैसी वेशभूषा में बैठे थे ।इंद्र का सिंहासन शादियों में दूल्हा दुल्हन के लिए सजने वाले स्टेज की भांति लग रहा था ,जिस पर देवराज और उनकी पत्नी इंद्राणी स्वर्ण आभूषणों से लदी बैठी हुई थी । पृथ्वी लोक और स्वर्ग लोक में तमाम असमानताओं के बीच एक समानता स्पष्ट रूप से दिख रही थी ,वह थी स्त्रियों का आभूषण प्रेम। धारणा बनाने वाले साहित्यकारों ने इंद्र दरबार के विषय में ऐसी कलम चलाई कि दरबार राजनीति से अधिक मनोरंजन और भोग विलास के लिए प्रसिद्ध हो गया ,जबकि ब्रह्मानंद को वास्तविकता कुछ और नजर आ रही थी ।दरबार में गंभीर चिंतन का माहौल लग रहा था ।अप्सराओं के नाम पर सांवले रंग की एक पतली दुबली महिला ही दरबार में मौजूद थी जो सिंहासन के बगल में खड़ी होकर इंद्र को पंखा झल रही थी ।
इंद्र का व्यक्तित्व किसी को भी वशीभूत करने वाला था सुंदर गोरा मुख ,दाढ़ी से श्रेष्ठता झलकती थी। चौड़े कंधे ,भारी शक्तिशाली शरीर देवताओं में सर्वोच्च होने का प्रमाण दे रही थी।
इन्द्र ने कृत्रिम मुस्कान के साथ ब्रह्मानंद से पूछा “लेखपाल साहब आपने एक मामूली किसान की शिकायत को इतनी गंभीरता से ले लिया कि मुझे यानी वज्रधारी इन्द्र को नोटिस देने चले आए” इन्द्र से ऐसे सीधे सपाट सवाल की उम्मीद ब्रह्मानंद ने नहीं की थी । वे थोड़ा सकपकाए फिर संयत होकर नर्म लहजे में बोले “महाराज यह शिकायत किसी एक किसान की नहीं है ,समूचा भारतवर्ष अनियमित वर्षा की मार झेल रहा है। हमारी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का बीड़ा उठाया है परंतु अनियमित वर्षा हमारे लक्ष्य में बाधा बनी हुई है ।अपनी दुर्गति के लिए किसान सरकार के विरुद्ध आंदोलन करते हैं ।रही बात आपकी वज्रधारी होने की तो आपको बता दें कि हमारी यूपी पुलिस ऐसे हजारों वज्र वाहनों के जरिए मजबूरी में इन किसान आंदोलनों को निष्क्रिय करती है” ब्रह्मानंद की बातें सुनकर इंद्र उद्वेलित भाव में बोले “आप अपने मामूली वज्र वाहन की तुलना मेरे शक्तिशाली वज्र से कर रहे हैं ” ब्रह्मानंद ने उत्तर दिया “नहीं महाराज हमारे पास उससे भी घातक पृथ्वी , ब्रह्मोस और अग्नि मिसाइल है परंतु हमारी भारत भूमि विश्व शांति और अहिंसा में विश्वास रखती हैं” । देवराज इंद्र आला दर्जे के कूटनीतिज्ञ थे रंग बदलने में माहिर जब उन्हें लगा कि उनके भौकाल मारने का ब्रह्मानंद पर जरा सा भी प्रभाव नहीं पड़ा तो वे हंसकर बोले” भाई साहब आपको क्या लगता है? हमारे पास पानी से भरा कोई लोटा है जिसे उड़ेल कर हम पृथ्वी लोक में वर्षा करते हैं? आप तो पढ़े-लिखे हैं, ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण को भलीभांति समझते होंगे ।
जहां दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 20 से अधिक हों, दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी हो और जो जल गुणवक्ता इंडेक्स के मामले में 122 देशों में 120 वें नंबर पर हो उस देश को इन्द्र से शिकायत नहीं बल्कि स्वयं में सुधार के लिए काम करना चाहिये “। ब्रह्मानंद इंद्र के मुख से ऐसी वैज्ञानिक बातें सुनकर हैरत में पड़ गए इंद्र अपनी बात जारी रखते हुए गंभीर मुद्रा में बोले ” आज पर्यावरण प्रदूषण संपूर्ण विश्व में एक गंभीर समस्या बना हुआ है चारों ओर प्रदूषण फैलाने वाले तत्व नजर आते हैं। इनकी रोकथाम मात्र दिखावा है। मानव जाति जिस ओर अग्रसर है उससे लगता है कि वह समय दूर नहीं जब समस्त जैव मंडल विनाश के मुंह में होगा” । इंद्र ने कहना जारी रखा “वायु ,जल ,वर्षा, भूमि ,नदी ,पर्वत इत्यादि संपूर्ण जैव मंडल का सुरक्षा कवच है ।जो अपने स्वार्थ के लिए मानव द्वारा नष्ट किया जा रहा है। ऋग्वेद में भूमि को माता कहा गया है मगर उनका अंधाधुंध दोहन मानव जाति ही कर रहा है और वर्षा की उम्मीद हमसे कर रहा है । “ब्रह्मानंद को देवराज की बातों ने मूक बना दिया था। दरबार में गंभीरता छाई हुई थी ब्रह्मानंद को खामोश देखकर माहौल को हल्का बनाने के लिए देवराज इंद्र ने अपने दरबारियों से मुखातिब होकर कहा कि वे भी लेखपाल महाशय को समझाएं पर्यावरण प्रदूषण के क्या परिणाम देख रहे हैं ।आज्ञा पाकर वरुण देव ने कहना शुरू किया” मैं जल देवता हूं पृथ्वी के 70 प्रतिशत से भी अधिक भूभाग का स्वामी ।आपके यहां सिंचाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला दूषित पानी कृषि प्रदूषण का एक बड़ा स्रोत है ।सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले अधिकांश पानी भूजल, जलाशयों , नहरों और वर्षा से होता है इनमें बहुत से जल संसाधन नाइट्रेट और कीटनाशकों जैसे दूषित पदार्थों वाले होते हैं ।अन्य स्रोत कार्बनिक योगिकों और भारी धातुओं जैसे पारा , आर्सेनिक, सीसा आदि से प्रदूषित है जो मिट्टी के तत्वों और फसलों को दूषित करते हैं । खाद्य जनित बीमारियों को बढ़ावा मिलता है यह परिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य दोनों के लिए घातक होता है” वरुण देवता ने अपना संबोधन समाप्त किया तो वन देवता ने अपनी बात शुरू की और कहा”वेदों ने पेड़ों में चेतन तत्व को माना है वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में परिवर्तित करके मानव को जीवन देते हैं ।भारतीय संस्कृति में वट, पीपल, आंवला आदि वृक्षों के पूजन करने का अभिप्राय ही यही है कि यह सर्वाधिक आक्सीजन प्रदान कर मानव जीवन की रक्षा करते हैं ।औद्योगिक विकास से वायुमंडल में फैलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य जहरीली गैसों के प्रभाव को कम करने के लिए जहां वनों के विस्तार की आवश्यकता है वही वन क्षेत्र निरंतर सिकुड़ते जा रहे हैं ।औद्योगिक क्रांति और बढ़ते शहरीकरण ने वायुमंडल में जहर खोल दिया है” वनदेवता की बात समाप्त होते ही ब्रह्मानंद को समझ आ गया कि धरती के समस्त संकटों का जिम्मेदार स्वयं मानव ही है ।विकास की अंधी दौड़ में कोमल, जीवनदायनी प्रकृति को नोचने निचोड़ने वाला कोई और नहीं खुद मानव ही है।
इसी सोंच में ब्रह्मानंद अचानक अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए ,हाथ में मौजूद नोटिस को फाड़ कर फेंक दिया और इंद्र की तरफ देख कर बोले ” महाराज मुझे आज्ञा दीजिए ,पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता और सुझाव प्रशंसनीय है । प्रदूषण के विरुद्ध छिड़ी लड़ाई को हम अवश्य जीतेंगे । धरा को संकट हमने दिया है तो समाधान भी हम ही करेंगे ” इतना कहकर लेखपाल ब्रह्मानंद तेज कदमों से दरबार के बाहर निकल गए ।