_विचार प्रधान लेख_
विचार प्रधान लेख
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साठ वर्ष की आयु : जीवन का एक सुंदर मोड़
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साठ वर्ष की आयु हो जाने का एक अपना विशेष महत्व होता है । वैसे तो मनुष्य की कुल आयु सौ वर्ष मानी जाती है अतः ऐसे में साठ वर्ष की आयु होने न होने का कोई विशेष महत्व नहीं होता ।
वास्तव में आयु सौ वर्ष नहीं होती , यह इससे कम होती है। इस कारण साठ वर्ष की आयु कार्य- क्षमताओं की दृष्टि से व्यक्ति के रिटायर हो जाने की आयु मान ली जाती है। आमतौर पर लोग साठ वर्ष की आयु में रिटायर होने के योग्य हो भी जाते हैं ।अनेक लोग तो पचपन वर्ष की आयु में ही कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। बहुत से लोगों का उनके कार्यकाल में ही निधन हो जाता है। इसी कारण अनेक पदों पर मृतक आश्रित ही काम कर रहे हैं । साठ वर्ष में जीवन के इस मोड़ पर व्यक्ति को अपनी शारीरिक संभावनाओं का पता चलने लगता है । मृत्यु से उसका साक्षात्कार भी इस आयु के आते -आते हो जाता है । अगर 80-85 वर्ष की आयु मनुष्य की व्यवहारिक आयु मान लें ,तब साठ वर्ष का व्यक्ति मृत्यु को अधिक निकट से तथा एक सुनिश्चित नियति के रूप में ज्यादा अच्छी तरह से पहचान पाता है । उसे मालूम चल जाता है कि अब उसके जीवन में 20 – 25 साल बचे हैं और इसी में उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करना है ।देखा जाए तो साठ वर्ष की आयु एक बार फिर से जीवन के लक्ष्य को पुनर्गठित करने के लिए हमें प्रेरित करती है । अगर आयु के 20 – 25 वर्ष भी बचे हैं (और हम 40 वर्ष न भी मानें ) तो भी यह अवधि कोई छोटी नहीं होती। इस अवधि का उपयोग केवल मृत्यु की प्रतीक्षा करने में हम नहीं कर सकते । हम निराश तथा हताश स्थिति में अपने जीवन के दो – ढाई दशक काट दें, यह कोई अकलमंदी की बात नहीं हुई । हमारा स्वास्थ्य अगर ठीक है तब तो यह 20 – 25 वर्ष बहुत मूल्यवान हो जाते हैं ।
वास्तव में देखा जाए तो साठ वर्ष की आयु का व्यक्ति तीस वर्ष की आयु के व्यक्ति की तुलना में अधिक मूल्यवान होता है। उसके पास संसार का अनुभव होता है तथा चीजों के संबंध में उसकी परख किसी भी अन्य कम उम्र वाले व्यक्ति की तुलना में कहीं ज्यादा होती है । उसके साथ साठ वर्ष का अनुभव होता है तथा तीस वर्ष की आयु के व्यक्ति की तुलना में वह इस संसार का अध्ययन अनेक गुना कर चुका होता है।
साठ वर्ष की आयु में अगर व्यक्ति को रोग न हो, वह अपने खान-पान को संतुलित बना ले, आचार विचार तथा दिनचर्या को अनुशासन में ढाल ले ,तब साठ वर्ष के बाद की डगर बहुत सुंदर तथा मनमोहक कही जा सकती है । स्वस्थ व्यक्ति साठ वर्ष के उपरांत परिपक्वता – पूर्वक अपने कदम रखता है । वह छोटी-छोटी बातों को नजरंदाज करने की प्रवृत्ति रखता है । उसे अनायास क्रोध नहीं आता । वह जानता है कि इस संसार में सबकी अपनी – अपनी मनोवृत्ति होती है तथा उसी के बीच में उसे सबके साथ जीना है।
सबसे बड़ी बात यह है कि साठ वर्ष के बाद व्यक्ति को इस बात का अच्छी तरह से आभास हो जाता है कि इस संसार में सब लोग एक मुसाफिर की तरह आते हैं । 80- 90 – 100 वर्ष तक रहते हैं ,दिन बिताते हैं और उसके बाद इस संसार से चले जाते हैं। यह क्रम न जाने कितने हजारों -लाखों वर्षों से चल रहा है और हजारों लाखों वर्षों तक ऐसे ही चलता रहेगा । इस लंबी यात्रा में एक आदमी का जीवन कागज पर स्याही की एक बूँद से ज्यादा महत्व नहीं रखता ।अतः व्यक्ति को अपनी नश्वरता का भी आभास होता है ,अकिंचनता का भी बोध होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि इस संसार की निरंतरता का उसे पता रहता है । वह जानता है कि दुनिया उससे पहले भी चल रही थी और जब वह इस संसार से चला जाएगा ,उसके बाद भी यह दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी ।
वह स्वाभाविक रूप से इस प्रश्न पर विचार करता है कि आखिर मेरे सौ या नव्वे वर्षों तक इस संसार में ठहरने का उद्देश्य क्या है ? वह विचार करता है और पाता है उसके आने या न आने का कोई अर्थ नहीं है। संसार एक यात्रा है जिसमें किसी भी अहंकार को कोई स्थान नहीं है । यह अहंकार ही तो है कि व्यक्ति अपने पदचिन्ह इस संसार में छोड़कर जाना चाहता है, जबकि प्रकृति चाहती है कि जो होटल का कमरा तुमने लिया है और जिसमें तुम चार दिन के लिए रह रहे हो ,अब साफ-सुथरा छोड़ कर जाओ । जैसा कि तुमने 4 दिन पहले लिया था । वहाँ तुम्हें कुछ भी अपना पदचिन्ह छोड़कर जाने की आवश्यकता नहीं है ।
मनुष्य जीवन की सार्थकता इसी बात में है कि हम अपने जीवन के प्रति कोई अहंकार मन में न पालें। यह न सोचें कि संसार हमारे कारण चल रहा है और न ही हम अपने बाद अपनी इच्छाओं से संसार को चलाने का प्रयत्न करें। हमें केवल इतना ही करना है कि हम इस संसार को आने वाले व्यक्तियों के लिए उनके उपयोग के योग्य छोड़कर जाएँ। वह किसी नए मुसाफिर की भाँति यह कह सकें कि देखो इस होटल के कमरे से जो यात्री अभी-अभी गया था , वह कितना सभ्य और सुसंस्कृत था ! उसने होटल की कोई वस्तु नहीं चुराई । उसने होटल के किसी भी स्थान को गंदगी से नहीं भरा तथा एक महकता हुआ वातावरण छोड़कर वह इस संसार से गया है । तभी उसके प्रति कृतज्ञता का भाव आगन्तुक के मन में पैदा होगा ।
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लेखक :रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451