84कोसीय नैमिष परिक्रमा
नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा का अंतरराष्ट्रीय महत्व है। यह परिक्रमा पौराणिक काल से चली आ रही है ।इसमें देश के विभिन्न प्रांतों एवं अन्य देशों जैसे नेपाल से तीर्थयात्री परिक्रमा आरंभ करते हैं ।
शासन द्वारा पेयजल ,भोजन ,चिकित्सा व्यवस्था ,यातायात परिवहन की व्यवस्था आदि की जाती है ।मेरा यह सौभाग्य रहा है कि मैं वर्षों तक इस 84 कोसी परिक्रमा का एक चिकित्सक के नाते भागीदार रहा हूं ।84 कोसी यात्रा सदियों से चली आ रही है, लोक मान्यता है कि 84 कोसी यात्रा से 8400000 योनियों के बंधन से मुक्ति मिलती है एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।
नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन वेदों पुराणों में मिलता है।
परिक्रमा स्थल का पौराणिक इतिहास –
एक बार देवता गण शत्रुओं को विजित कर दधीच मुनि के आश्रम आए ।उन्होंने समस्त देवताओं का अतिथि सत्कार किया। देवताओं ने लोकहित में अपने दिव्यास्त्रों की सुरक्षा का भार महर्षि को प्रदान किया ।समय बीतता गया पर देवताओं ने अपने दिव्यास्त्र की सुध न ली, इससे चिंतित होकर महर्षि जी ने शास्त्रार्थ के सार तत्व को संग्रह करके घोल बनाकर पान कर लिया और निश्चिंत होकर तप करने लगे। अति दीर्घ काल बीत जाने के बाद शत्रु से भयभीत होकर देवगण शस्त्र लेने आए तब महर्षि ने बताया कि सुरक्षा की दृष्टि से उन्होंने शस्त्रों के सार तत्व का मंत्र शक्ति से पान कर लिया है।
अब यह शक्तियां मेरी अस्थियों में समाहित है। देवताओं ने महर्षि से विनम्र प्रार्थना की यदि शस्त्र उन्हें वापस ना मिले तो वे सभी शत्रुओं से पराभूत हो त्राण न पा सकेंगे। महर्षि को दया आ गई और वह बोले मैं योग मुक्त होकर प्राण त्यागता हूं और तुम लोग मेरी अस्थियों से उत्तम शस्त्र प्राप्त कर लो ,किंतु शरीर त्याग से पहले उन्होंने सभी तीर्थों के जल से शरीर पवित्र करने की प्रबल कामना प्रकट की। देवताओं ने समयाभाव का विचार करते हुए लोक कल्याणार्थ भूमंडल के समस्त तीर्थों का नैमिष में आवाहन किया तथा उक्त तीर्थ के मिश्रित जल से मुनि के शरीर को स्नान करा कर गायों से उनकी त्वचा चटवा कर अस्थि ग्रहण कर वज्र बनाया तत्पश्चात अपने प्रबल शत्रु वृतासुर का संहार किया। वास्तव में वृत्तासुर वृत्त के समान भंवर पैदा कर किसी निश्चित स्थान से भूमंडल की प्राण वायु (ऑक्सीजन) को समाप्त कर देता था जिससे उसके विरुद्ध खड़ी सेना प्राण वायु के अभाव में मनोबल हीन हो जाती थी और आसुरी शक्तियां विजयी हो जाती थी। यही कारण है कि देवताओं की शक्तियां असुरों के समक्ष कमजोर हो जाती है ।वह स्थान जहां देवताओं ने महर्षि दधीचि जी के शरीर को तीर्थो के मिश्रित जल से स्नान कराया वह जल कुंड मिश्रित तीर्थ कहलाया। कुंड के पास महर्षि दधीचि की प्रसिद्ध समाधि भी है जहां उन्होंने योग क्रिया से प्राणों का विसर्जन किया था।
लोक कल्याणकारी यात्रा का प्रारंभ –
एक बार माता पार्वती ने जनकल्याण हेतु तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव शंकर से कलयुग में घटित होने वाली तीर्थ यात्रा के संबंध में प्रश्न पूछते हुए कहा कि कलयुग में प्राणी एक लोक की यात्रा के लिए भी समय ना दे सकेगा ऐसे में वह किस प्रकार तीनों लोकों की यात्रा करेगा। तीनों लोकों के स्वामी भगवान शंकर ने सहज भाव से उत्तर देते हुए कहा जो प्राणी कलयुग की नैमिष की 84 कोसी यात्रा करेगा उसे तीनों लोकों के समस्त तीर्थ यात्रा का अक्षय फल मिलेगा ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि महर्षि दधिचि का शरीर त्याग से पूर्व की इच्छा को पूर्ण करने के लिए तीनों लोकों के समस्त तीर्थ नैमिष की तपोभूमि में उनके समक्ष विराजमान हुए। अतः 84 कोसी परिक्रमा से प्राणी को तीनों लोकों के समस्त तीर्थो का मानो वांछित लाभ मिलता है आज भी यह मान्यता प्रचलित है की जो प्राणी भूमंडल के सभी तीर्थ की यात्रा करने में सक्षम नहीं है वह नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा कर ब्राह्मणों को दान धर्म करेगा उसे समस्त तीर्थो का फल प्राप्त होगा ।प्रत्यक्ष रूप से समस्त तीर्थ एवम 33 करोड़ देवी देवता इस भूमि में वास करते हैं ।
वामन पुराण के अनुसार-
“पृथिव्या यानि तीर्थानी तानी सर्वाणी नैमिषे।”
84 कोसी परिक्रमा की प्रारंभ तिथि –
यह परिक्रमा फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को चक्रतीर्थ में स्नान कर फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को सिद्धिविनायक जी की पूजा अर्चना कर आरंभ होती है ।यह यात्रा 15 दिनों तक चलती है इसके करने से संपूर्ण तीर्थों का फल प्राप्त होता है और मनुष्य 8400000 योनियों के भव बंधन से मोक्ष प्राप्त करता है ।
परिक्रमा स्थल पड़ाव –
84 कोसी परिक्रमा में कुल 11 पड़ाव हैं।
नैमिषारण्य में तड़के पहला आश्रम के संतों का डंका बजाते ही 84 कोसी परिक्रमा पथ राम नाम के जयघोष से गूंज उठता है आश्रम में डंका बजाते ही रथ पर सवार महंत और हाथी घोड़ों पर सवार संतों द्वारा पूरे नैमिष का भ्रमण होता है । परिक्रमार्थियों पर पुष्प वर्षा की जाती है
नैमिष से कोरौना प्रथम परिक्रमा स्थल है। नैमिष में प्रभु श्री राम ने अयोध्या वासियों के साथ परिक्रमा की थी अतः परिक्रमार्थियों को रामादल भी कहा जाता है।
सीतापुर में सात एवम हरदोई में चार पड़ाव पड़ते हैं ।84 कोसी परिक्रमा के सात पड़ाव सीतापुर जिले में कोरोना देवगंवा , मडरुआ, जरीगंवा , नैमिषारण्य कोल्हुआ बरेठी व मिश्रित हैं। इसी तरह हरदोई जिले में हरैया, नगवा कोथावां, गिरधर ऊमरारी ,साक्षी गोपालपुर पड़ाव स्थल है।
मिश्रिख में होती है पंचकोसी परिक्रमा- परिक्रमा का 10 पड़ाव पार कर परिक्रमार्थी महर्षि दधीचि की नगरी मिश्रित पहुंचते हैं ।यहां श्रद्धालु 5 दिन ठहर कर मिश्रित के आसपास पंचकोशी परिक्रमा करते हैं ।पंचकोसी परिक्रमा पथ पर पड़ने वाले मंदिरों के दर्शन पूजन के साथ ही दधिचि कुंड में स्नान करते हैं।
चौरासी कोस की परिक्रमा की परिधि में विराजित 33 कोटि देव व साढ़े तीन करोड़ तीर्थों के दर्शन पूजन के लिए की गई इस परिक्रमा की परंपरा का निर्वहन आज भी पूरे भाव से श्रद्धालु कर रहे हैं। पावन पंचकोसी परिक्रमा होलिका होलिका दहन के साथ पूर्ण होती है। पंचकोसी परिक्रमा के दौरान प्रतिदिन लाखों की संख्या में परिक्रमार्थी चक्रतीर्थ एवं गोमती नदी में स्नान कर तीर्थ पुरोहितों को दान दक्षिणा देते हैं। फिर मां ललिता देवी ,व्यास गद्दी, हनुमानगढ़ी, सूत गद्दी ,काली पीठ, देवदेवेश्वर आदि स्थानों का दर्शन करते हैं ।मिश्रित के दधिचि कुंड में स्नान कर उसकी परिक्रमा करते हैं। मान्यता के अनुसार जो श्रद्धालु गण 84 कोसी परिक्रमा नहीं कर पाते उन्हें पंचकोसी परिक्रमा करने से 84 कोसी परिक्रमा करने का फल मिलता है।
कोरौना पड़ाव का महत्व –
परिक्रमा स्थल कोरौना में द्वापर युग में भगवान कृष्ण आए थे। भगवान कृष्ण अपने कुलगुरू महर्षि गर्ग से भेंट करने की इच्छा से आए थे ।महर्षि के आग्रह पर उन्होंने अपने चतुर्भुज रूप का दर्शन कराया था। चतुर्भुज मंदिर आज भी यहां स्थापित है। भगवान कृष्ण ने डेरा डाला था , अतः यह क्षेत्र द्वारका क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है ।
कोरौना परिक्रमा स्थल से प्रातः तड़के यात्रा हरैया पड़ाव हरदोई जनपद में प्रवेश करती है । कोरौना से हरदोई हरैया पड़ाव 19.20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। हरैया पड़ाव पहुंचकर तमाम भक्त गोमती में डुबकी लगाते हैं, और श्री हरि का जप करते हैं ।स्कंद पुराण में परिक्रमा का महत्व वर्णित है ।पुराण के अनुसार सबसे पहले भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने परिक्रमा की थी ।भगवान श्रीराम ने भी ब्रह्म दोष से मुक्ति पाने के लिए अयोध्या वासियों के साथ परिक्रमा की थी यही वजह है कि परिक्रमा दल को रामा दल भी कहा जाता है।
रात्रि विश्राम के उपरांत रामा दल प्रातः नगमा कोथावां पहुंचता है इस क्षेत्र में हत्या हरण तीर्थ काफी प्रख्यात तीर्थ स्थल है। तीर्थों में हजारों श्रद्धालु स्नान करते हैं रामा दल अपने पांचवें पढ़ाओ साकिन गोपालपुर हरदोई पहुंचते हैं । परिक्रमार्थी यहां भगवान भोलेनाथ का ,भगवान गोपाल कृष्ण का दर्शन करके आशीर्वाद लेते हैं ।
अगला पड़ाव जनपद सीतापुर में देवगंवा पड़ेगा। इस दौरान यात्रा में परिक्रमार्थी परिक्रमा मार्ग में द्रोणाचार्य, श्रृंगी ऋषि ,मां अन्नपूर्णा आदि तीर्थ और मंदिरों के दर्शन करते हैं।
गोमती नदी पर श्रद्धा का एक अलग ही संगम देखने को मिलता है।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम