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28 May 2024 · 1 min read

56…Rajaz musaddas matvii

56…Rajaz musaddas matvii
mufta’ilun mufta’ilun mufta’ilun 2112 2112 2112
मेरी जुबां जब भी फ़िसल जाती है
बात जरा तल्ख निकल जाती है
#
जज्ब निगाहों से भला फायदा क्या
चोट दिली गम में बदल जाती है
#
शौक से अफ़सोस करें जाहिर गम
खास नदामत ये निगल जाती है
#
उसको तराशा हमी ने जान लगा
हीरे सी सूरत वो ही खल जाती है
#
लाख की चाहे हो कमाई दौलत
नाम नजर खास उछल जाती है
#
सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com
7000226712

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