47…..22 22 22 22 22 22
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भूले तुमको, बस यूँ ही बातों बात में हम
भीगे इतना तनहा बारिश,-बरसात में हम
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बे मौसम सहना पड़ता दुनिया भर के ताने
फिर छोटी कुटिया,फिर वो ही औकात में हम
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जिस हाल तुमने रखा , सहने की क्षमता टूटी
क्षीण हुए भीतर ज्यादा सदमो की हालात में हम
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एक कहर सी लगती, आज सजा सौ-सालो की
अपनेपन का दंश कुचले हुए आघात में हम
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सब्ज दरख़्त हमें , सुख कितना देता लेकिन
काट-गिराने सोच रख अक्सर होते घात में हम
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बचपन नावें, कागज़ की जब तैरा करती
उस पर बहते ,उम्मीदों की जज्बात में हम
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सुशील यादव