4507.*पूर्णिका*
4507.*पूर्णिका*
🌷 अब मिलते कहाँ आदमी 🌷
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अब मिलते कहाँ आदमी।
मन सिलते कहाँ आदमी।।
कैसे जानना समझना।
सच हिलते कहाँ आदमी।।
मतलब साधते बस यहाँ ।
कब खिलते कहाँ आदमी।।
दुनिया बेवफा की तरह।
बन छिलते कहाँ आदमी ।।
थामे सांस खेदू जहाँ ।
जब पिलते कहाँ आदमी।।
…….✍️ डॉ. खेदू भारती “सत्येश “
01-10-2024 मंगलवार