4442.*पूर्णिका*
4442.*पूर्णिका*
🌷 कितनी छोटी सोच तुम्हारी🌷
22 22 22 22
कितनी छोटी सोच तुम्हारी ।
इतनी छोटी सोच तुम्हारी।।
जाने समझे ना माने भी।
दकियानूसी सोच तुम्हारी ।।
काम इशारों से करते सब ।
कैसे नाजुक सोच तुम्हारी ।।
वक्त की पहचान कहाँ रखते।
उलझे उलझे सोच तुम्हारी ।।
संग हमारे खुशियां खेदू।
बदलेगी अब सोच तुम्हारी।।
……..✍️ डॉ. खेदू भारती “सत्येश “
25-09-2024 बुधवार