3121.*पूर्णिका*
3121.*पूर्णिका*
🌷 चाहत है सौगात की🌷
22 22 212
चाहत है सौगात की ।
ये डर फिर किस बात की ।।
दुनिया संवरती जहाँ ।
चक्रव्युह है दिन रात की ।।
बन जाती है जिंदगी ।
यूं एक मुलाकात की ।
करते कुदरत अंचभित ।
बातें हैं औकात की ।।
दिल खेदू नायाब सा।
बस राह करामात की ।।
…………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
14-03-2024गुरुवार