3034.*पूर्णिका*
3034.*पूर्णिका*
🌷 अपने गैर हो जाते हैं 🌷
22 22 2122 22
अपने भी क्यों गैर हो जाते हैं ।
अपनों से क्यों बैर हो जाते हैं ।।
हम तो सच खोले खजाना दिल के।
बातों में क्यों खैर हो जाते हैं ।।
नायाब यहाँ जिंदगी है प्यारी।
कसरत भी क्यों सैर हो जाते हैं ।।
रोज तमाशा देखने की आदत।
हाथ कभी क्यों पैर हो जाते हैं ।।
खुशियाँ हरदम बांटते है खेदू।
गम भी अब क्यों कैर हो जाते हैं ।।
………✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
21-02-2024बुधवार