2805. *पूर्णिका*
2805. पूर्णिका
मंजिल अपनी पाओगे
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मंजिल अपनी पाओगे।
गर तुम साथ निभाओगे।।
कहने को तो बहुत यहाँ ।
चल कर आगे आओगे।।
जीना मरना है आसां ।
दुनिया यूं महकाओगे।।
ऊँची रखते सोच जहाँ ।
पथ पर बढ़ते जाओगे।।
खुशियों की चाहत खेदू ।
सुंदर शान बढ़ाओगे।।
……✍ डॉ .खेदू भारती”सत्येश”
08-12-2023शुक्रवार